कुछ दिन और रुक जाती बिटिया

कुछ दिन तो और रुक जाती बिटिया

अभी तो जी भरा नहीं है ।

तू गई तो मानो सब खो गया

तुमसा तो सोना भी खरा नहीं है ।

तेरे कमरे की अलमारी हमसे पूछेगी बिटिया

वो कहाँ गई जो बड़े जतन से

अपने कपड़े सहेज कर यहाँ रखती थी

आजकल दिखाई नहीं पड़ती

तो क्या जवाब देंगे तुम ही बताती जाना

तुम्हारे कमरे का वो आईना

उदास होकर पूछेगा कहाँ है वो

जो घंटों घंटों मेरे सामने 

सजती संवरती थी

तो क्या जवाब देंगे हम तुम ही बताती जाना गुड़िया

डाइनिंग टेबल से लगी तेरी वो चेयर 

क्या अब हमेशा खाली रहेगी

वो कुछ पूछेगी तो क्या कहेंगे हम

तुम ही बताती जाना लाडो

अब आइस क्रीम खाकर बीमार पड़ोगी

तो कौन डाँटेगा तुम्ही बताती जाना 

अब bday पर रात 12 बजे केक कौन

काटेगा तुम्ही बताती जाना बिटिया

बताओ तुम ही यूँ

झटके में सुना कर जाता है 

क्या घर का आँगन कोई

यूँ अचानक चिड़िया की तरह छोड़कर घोंसला

उड़ जाता है कोई

इस घर की एक एक ईंट को एक एक चीज को

तुम्हारे साथ रहने की आदत है

किस किस को समझाएं हम

तुम्ही बताती जाना गुड़िया

घर की हर चीज यही ज़िद कर रही है

हम उसे जाने नहीं देंगे

दरवाजे पर खड़े होकर

रास्ता रोक लेंगे फिर कैसे जाएगी दीदी

पर मैंने उन्हें समझा दिया है 

बीच बीच में दीदी मिलने आती रहेंगी

तब जाकर मानें हैं । 

अब तूं चिंता न कर आराम से जा

हंसी ख़ुशी जा 

जहाँ भी रहना खुश रहना बिटिया

बस एक बात हमारी भी मान लेना

आंसुओं की धार से इन कांधों को भिगोने देना

विदा होते वक्त हम सबको लिपटकर रोने देना

कुछ दिन और रुक जाती बिटिया ......

" मनोज नायाब "







































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