आखिर क्यों
धरा को रक्त रंजित करके
क्यों इसे दागदार कर देना चाहते हो
आखिर ऐसा क्यों करते हो ।
धरा की हरियाली को नोच नोच कर
क्यूँ इसे नग्न कर देना चाहते हो
आखिर ऐसा क्यूँ करते हो ।
धरा कीप्रज्ज्वलित मानव शिखाओंकोबुझाकर
क्यों इस धरा पर अंधेर करना चाहते हो
क्यों इस धरा पर अंधेर करना चाहते हो
आखिर ऐसा क्यूं करते हो ।
धरा पर बुरादा बारूद का बिछाकर
क्यूँ इसे राख करना चाहते हो
आखिर ऐसा क्यों करते हो ।
धरा की हवाओं में घोलकर ज़हर
क्यों इस जन्नत को जहन्नुम करना चाहते हो
आखिर ऐसा क्यूँ करते हो ।
शायद धरा का दिल अंदर ही अंदर रो रहा है
की मानव धीरे धीरे अपना अस्तित्व खो रहा है
"मनोज नायाब"
Comments
Post a Comment
Pls read and share your views on
manojnaayaab@gmail.com