अब चालीस के हो लिए ab chalis ke....
जीवन था कच्ची माटी की मूरत
बन गयी है इक परिपक्व सूरत
रंग नए कुछ तो घोलिये
अब चालीस के हो लिए
कुछ बनो अब धीर तुम
औरों की समझो पीर तुम
अब जाग भी जाओ ए सजन
जवानी में बहुत सो लिए ।
अब चालीस के हो लिए.....
वो बातें थी तेरे जोश की
नहीं उम्र थी वो होश की
बोलने से पहले दोस्त मेरे
दिल में पहले तोलिये
अब चालीस के हो लिए....
होड़ थी आगे ही आगे बढ़ने की
न उठाई ज़हमत कभी पढ़ने की
ज़िन्दगी की किताब के
उन पन्नों को खोलिए
अब चालीस के हो लिए....
नहीं फिक्र है जीवन की कश्ती की
हर वक्त बात मौज और मस्ती की
उस दौर में ये इल्ज़ाम तुमने
बहुत सर पे अपने ढो लिए
अब चालीस के हो लिए.....
" मनोज नायाब "
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