Shabda bolte hai...words speak शब्द बोलते हैं

बात लिखने की है तो उसके लिए एक अदद भाषा की आवश्यकता है, और भाषा के लिए लिपि और लिपि के लिए चाहिए शब्द ।  कागज़ पर बिखरे हुए शब्द दिखने में बेजान से लगते हैं पर उनमें भी प्राण होते हैं, क्यूंकि शब्द रुलाते भी हैं और हंसाते भी है कभी व्यंग्य के तीखे बाणों से घाव भी देते है तो कभी प्यार का मरहम भी लगाते हैं । तोप रूपी कलम से निकलकर कभी हथियार का काम भी करते हैं तो बांसुरी से निकले सुरों से सरगम भी बन जाते हैं  इसलिए शब्द की ताकत को कम करके नहीं आँका जा सकता । यहाँ मुझे कबीर का ये दोहा बहुत सटीक लगता है आप स्वयं पढ़ें ..... शब्द शब्द सब कोई कहे ,शब्द के हाथ न पाँव  एक शब्द औषध करे , एक शब्द करे घाव ।। ............................................................ एक शब्द सुख रास है , एक शब्द दुःख रास । एक शब्द बंधन बने , एक शब्द गल फाँस ।।  ये तो हुआ एक पहलु दुसरे पहलु को देखें तो दरअसल इंसान ने जानबूझकर शब्दों को बेजुबान यानी गूंगा बनाया है ताकि उनका इस्तेमाल वो अपनी मर्ज़ी से कर सकें, यानी शब्द वही कहेंगे जो लेखक चाहेगा ।  इस लिहाज़ से देखें तो शब्द बेजुबान है बस उन्हें पढ़कर आप उसके सन्देश को महसूस कर सकते हैं ।   मित्रों यह चर्चा कोई बहुत रुचिकर नहीं है मगर महत्वपूर्ण जरुर है कभी कभी रूचि से ज्यादा महत्व को भी स्थान देना चाहिए मैंने ये चर्चा इसलिए की है की अब आप जब भी कुछ पढेंगे आप उनमे छिपे भावों को स्वतः ही महत्व देने लगेंगे और लेखक की मंशा को भी परखेंगे ।  मेरी मंशा हरगिज़ आपको बोझिल करने की नहीं है बस मुझे आपको एहसास कराना जरुरी लगा ।  अब अगली पोस्ट में फिर मिलूँगा एक कविता के साथ ..तब तक जय श्री कृष्ण ।                               आपका                       मनोज नायाब  

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