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Showing posts from July, 2024

हिसाब

मेरी टूटी हुई हर आस  का हिसाब  देना होगा खाली बीते हर मधुमास का हिसाब देना होगा दिल ए कब्रगाह में है अरमानों की लाशें  हर उस लाश का हिसाब देना होगा । दिल की गहराईयों में धंसी हुई  हर एक फांस का हिसाब देना होगा । तेरे मुस्कुराने भर से जो रुक गई थी  तुझे हर उस सांस का हिसाब देना होगा । नायाब --

आटा

एक कविता से प्रेरित... एक आदमी समाज की  एकता का आटा लाता है, दूसरा आदमी  उस को  अपनी मेहनत से बेलता है, ये तीसरा कौन है जो न कुछ लाता है न ही बेलता है, पद  लोलुप होकर  समाज की एकता से  खेलता है, मौन होकर पूरा समाज आखिर क्यों उसे झेलता है ।

तुम मेरी पहली कविता

तुम मेरी पहली कविता का   एक परिपूर्ण सा छंद हो तुम प्रणय गीत का मुखड़ा हो तुम ही बस अंतिम बंद हो तुम मेरे स्वप्न की मृगनयनी तुम ही कस्तूरी की सुगंध हो जीवन कड़वा पान का पत्ता उसमें जैसे तुम गुलकंद हो  वक्त का सूरज जब जिस्म जलाए तब चांदनी तुम मंद मंद हो  थाम हथेली ताकत देती  जब भी जीवन में कोई द्वंद हो   हर वक्त हौसला मुझको देती  निराशाओं पर जैसे प्रतिबंध हो

पुराने अच्छे लगते हैं

मासूमियत से करो तो हर बहाने अच्छे होते हैं कोई प्यार से लगाए तो निशाने अच्छे लगते हैं  जरूरी नहीं कि हर नई चीज ही अच्छी हो शराब हो या फिर दोस्त पुराने अच्छे लगते हैं । पंछियों को सोने के पिंजरे से क्या लेना देना आज़ादी से मिल जाए वो दाने अच्छे लगते हैं । तुम नायाब की लिखावट पर न जाओ दोस्तों हमें तो उनके शेरों के मायने अच्छे लगते हैं ।

टूटते पुल

ध्वस्त हो रही मर्यादाएं  टूटती जा रही है परंपराएं  भरभराकर गिरते रिश्ते है बिहार के टूटते पुल पैगाम की तरह । क्या नहीं किया सनम तेरे इश्क़ में लड़ बैठे जहां से सनम तेरे इश्क़ में हमने सोचा न था बेवफ़ा निकलोगी अयोध्या की आवाम की तरह । तुम बिन ए साथी ठहर सी गई है जिंदगी  रुक सी गई है सांसे  दिल्ली के ट्रैफिक जाम की तरह । मनोज नायाब ✍️

तुम्हे क्या पता

पीके सच बोलना यही तो हमारा काम है तुम्हे क्या पता सदियों से चल रहा सिलसिला ये आम है तुम्हे क्या पता बिन पिये ही नफरत करने वालों  ये शराब किस शह का नाम है तुम्हे क्या पता कंक्रीट के शहर में रहने वालों गांवों में होती कितनी हसीन शाम है तुम्हे क्या पता जो नहीं मिला पता तो फाड़ दिया खत ए डाकिए इसमें किसी का पैगाम है तुम्हे क्या पता बंदगी तुम्हें जिसकी भी करनी है करो मगर इस मुल्क के आका बस राम है तुम्हे क्या पता संभालना तुम्ही से खरीद लेंगें ये तुमको नायाब  इनकी जेबों में होते बड़े दाम है तुम्हे क्या पता