तुम्हे क्या पता

पीके सच बोलना यही तो हमारा काम है तुम्हे क्या पता

सदियों से चल रहा सिलसिला ये आम है तुम्हे क्या पता


बिन पिये ही नफरत करने वालों 

ये शराब किस शह का नाम है तुम्हे क्या पता


कंक्रीट के शहर में रहने वालों

गांवों में होती कितनी हसीन शाम है तुम्हे क्या पता


जो नहीं मिला पता तो फाड़ दिया खत

ए डाकिए इसमें किसी का पैगाम है तुम्हे क्या पता


बंदगी तुम्हें जिसकी भी करनी है करो

मगर इस मुल्क के आका बस राम है तुम्हे क्या पता


संभालना तुम्ही से खरीद लेंगें ये तुमको नायाब 

इनकी जेबों में होते बड़े दाम है तुम्हे क्या पता 


Comments

Popular posts from this blog

यहाँ थूकना मना है yahan thukna mana hai

हां हिन्दू हूँ

13 का पहाड़ा