तुम मेरी पहली कविता

तुम मेरी पहली कविता का 

 एक परिपूर्ण सा छंद हो


तुम प्रणय गीत का मुखड़ा हो

तुम ही बस अंतिम बंद हो


तुम मेरे स्वप्न की मृगनयनी

तुम ही कस्तूरी की सुगंध हो


जीवन कड़वा पान का पत्ता

उसमें जैसे तुम गुलकंद हो 


वक्त का सूरज जब जिस्म जलाए

तब चांदनी तुम मंद मंद हो 


थाम हथेली ताकत देती 

जब भी जीवन में कोई द्वंद हो  


हर वक्त हौसला मुझको देती 

निराशाओं पर जैसे प्रतिबंध हो

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