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तुझे कागज़ तो दिखाना होगा

तुझे कागज़ तो दिखाना होगा । जो यहीं के हो तो यहीं रहो  गर लांघ कर सरहद आए हो  तो बिस्तर बांध के जाना होगा तुझे कागज़ तो दिखाना होगा । जो हम वतन हो तो दिल में बिठाएंगे साथ बैठकर गुनगुनी धूप में सेवईयां खाएंगे रात के अंधेरों में छुपकर आने वाला बता वापिस कब रवाना होगा तुझे कागज़ तो दिखाना होगा । चंद कीड़ों को निकालने के लिए बीनने पड़ते हैं चावल सभी हमारे भात में कंकर बनने वालों  सरहद पार तेरा ठीकाना होगा । तुझे कागज़ तो दिखाना होगा । जो देश के रंग में रंग न सका तो रंगरेज़ कैसा धरा को मां कहने में इतना परहेज कैसा अब तो वंदे मातरम भी गाना होगा तुझे कागज़ तो दिखाना होगा । जाने कितने भीतर तक  अम्न को तुमने कुतरा है । भाईचारे की दरियादिली का नशा  अब जाकर हमें भी उतरा है । देश को टुकड़ों में बांटने वालों को अब तो सबक सिखलाना होगा तुझे कागज़ तो दिखाना होगा । जब गुलिस्तां को उजाड़ रहे थे सफेद लिबास वाले भेड़िये नायाब तब हम मौन नहीं थे । अपने बच्चों को हमें ये बताना होगा तुझे कागज़ तो दिखाना होगा ।    

तीर्थ और हनीमून

एक ट्रेन की सीट पर आमने सामने दो जोड़े एक बुजुर्ग दंपत्ति एक नव विवाहित युगल एक निकले पहली बार तीर्थ यात्रा पर एक निकले विवाहोपरांत हनीमून पर बुजुर्ग दंपत्ति के लिए  यह प्रथम तीर्थ यात्रा  किसी हनीमून से कम नहीं  क्योंकि गृहस्थी की जिम्मेदारियों ने कभी एक दूजे के लिए  वक्त ही नहीं दिया और हनीमून के लिए  निकले नवयुगल का हनीमून  किसी तीर्थ यात्रा से कम नहीं  रिश्ते का श्री गणेश किसी तीर्थ से कम नहीं

कैसे भूल जाऊं

विवाह के बाद लड़की का सिर्फ मायका नहीं छूटता छूट गया वो मेरा कमरा  जिसको खूब सजाया करती थी वो मेरी अलमारी  जिसमें मैं बचपन के खिलोने रखती थी और मेरी पूरी दुनियां उस अलमारी में होती थी । वो पड़ोसी भी छूट गए  जिनसे कई बार झगड़े होते थे मगर मेरी विदाई में  फूट फूट कर  वो भी मेरी मम्मी पापा जितना रोये थे  घर के बाहर वो किराने की दुकान जहां से चॉकलेट ले लेती और कह देती पैसे पापा देंगें  वो मंदिर जिस में जाकर न जाने कितनी मन्नतें मांगा  करती थी । वो गली के बाहर खेलते बच्चे वो सखियां वो सहेलियां  जिनके साथ हर साल  गणगौर पूजती थी अब सभी पीछे छूट गए  मेरा पुराना टूथ ब्रश मेरा टॉवेल  वो बिना ब्रांड के नेलपॉलिश  वो चूड़ियां जिनको  कभी पहना नहीं  मगर न जाने क्यों  कभी फेंका भी नहीं  सब तो मायके में छोड़ आई और सुनो कैसे कह देते हो तुम  मायके की बात ससुराल में  न किया करो मैं करती नहीं बस सहसा ही  जुबान पर आ जाती है  एक पूरी दुनियां थी मेरी सब छोड़ आई हूं पीछे  विदा होते वक्त पलटने  भी नहीं दिया मुझे  बस कार की खिड़की  से आखिरी बार  देख पाई थी मैं  अपना घर अब वो मेरा घर नहीं  मायका हो गया है फिर भी कैसे भु

दीवाली

असुरों से ये त्रस्त जगत की  करुण व्यथा दीवाली है । अंधेरों से संघर्षों की  एक अद्भुत प्रथा दीवाली है । चहुं ओर निराशा के घेरे थे वहां रक्त पिपासु के डेरे थे बुझे पड़े सब हवन कुंड  तब फैल गए  दुष्टों के झुंड जब लांघ गई पीड़ा सीमाएं तब आमजनों का वानर सेना  बनने की कथा दीवाली है । नेत्रों में अश्रु के थे झरने  फिर भी सबकी पीड़ा हरने जंगल बीहड़ दुनियां नापी आदर्शों से नहीं डिगे कदापि सिया राम के उस बिछोह की उस नैतिकता के मूल्यों की  एक प्रेम कथा दीवाली है । अंधेरों से संघर्षों की  एक अद्भुत प्रथा दीवाली है ।

बटेंगे तो कटेंगें

सभी सनातनी बस यही बात रटेगें जातियों में बंटेंगे तो फिर हम कटेंगें  जातियों में छंटेगें तो आपस में बंटेंगे  आपस में बंटेंगे तो गिनती में घटेंगे  अब तो संभल जाओ मेरे सनातनियों गिनती में घटेंगे तो फिर सारे कटेंगें  बंटेंगे तो कटेंगे - बंटेंगे तो कटेंगे । हमला हो रहा रोज़ तुम पर चहुं ओर हिंदुओं के भेष में है कितने हरामखोर कब तक सहोगे क्यों नही मचाते शोर आंख में अंगार भर पोंछ आंसुओं की कोर अब नहीं लुटेंगें अब नहीं पिटेंगे धर्म बचाने हम मिलकर डटेंगें कटेंगें तो बटेंगे कटेंगें तो बटेंगे  ताकत में हम ही सबसे बड़े थे राजा राजवाड़े सभी आपस में लड़े थे तुमसे हूँ बलशाली इसी बात पर अड़े थे मौके की तलाश में सारे दुश्मन खड़े थे चाहे हो मराठा तुम चाहे राजपूत हो सारे के सारे तो माँ भारती के सूत हो चहुं ओर देखो ये शिकारी बड़े आए हैं तुमको फंसाने कैसे जाल बिछाएं है   पहले जैसी भूल अब फिर नहीं करेंगे  अब नहीं लुटेंगें अब नहीं पिटेंगे बटेंगे तो कटेंगें बटेंगे तो कटेंगें  बहुत हो चुका है अब हम नहीं बंटेंगे  अब नहीं बटेंगे अब नहीं बटेंगे  अब नहीं बटेंगे अब नहीं कटेंगें जातियों में बंटेंगे तो फिर सारे कटेंगें

नशा खुरानी

कोई  फर्क नहीं  तुम मेष  मकर या मीन हो कभी मीठा कभी कसेला कभी नमकीन हो जहां भी जाओगी कयामत ढहाओगी  अमरीका जापान या फिर चीन हो  नशा खुरानी तो पेशा है तुम्हारा  तुम दिल लूट ने की शौकीन हो हाए कहीं पुलिस का छापा न पड़ जाए  तुम तो चलती फिरती कोकीन हो तुम हँसती हो तो केल्शियम जैसी हो और मुस्कुराती हो तो प्रोटीन हो

ये किताबें मेरे काम की नहीं

ये किताबें मेरे काम की नहीं-- कितनी किताबें पढ़ ली  मैंने तुम्हारी नायाब उसमें आकाश छूने की तरकीबें थी हिमालय की गहराइयों का ज़िक्र भी था सोना चांदी  फूल तितलियां  5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था सेंसेक्स की उछाल सौंदर्य चित्रण प्रेम प्रसंग सब थे उसमें कागज़ की क्वालिटी शानदार है कवर पेज भी आकर्षक है बहुत अच्छा लिखते हो तुम  एक बात कहूँ  बुरा नहीं मानना ये सब भरे पेट वालों के काम की है क्षमा करना  इन्हें लौटाना चाहता हूं ये किताबें मेरे काम की नहीं कोई ऐसी किताब भी  लिखी हो तो देना  जिसमें मेरे बच्चों की  भूख मिटाने की  स्कूल की फीस भरने की  बिटिया के ब्याह का  कर्ज लौटाने की टूटी दीवार पर प्लास्टर करवाने की तरकीब लिखी हो  फिर चाहे उसमें  मीटर अलंकार काफिया यति गति व्याकरण  न हो तो भी मेरे लिए अनमोल होगी ।  तुम्हारी उठ बैठ तो  नामचीन कवियों -शायरों से है पूछो न उन्होंने लिखी हो कोई ऐसी किताब  तो मुहैया करवाना ना ।

चलो लोकतंत्र बचाएं

नायाब -- झोले भर पत्थर कनस्तर भर पेट्रोल बोतल में केरोसिन नफरत की चासनी में लिपटे कुछ आज़ादी के नारे किसी धर्म विशेष को खास विशेषण से लिखी नारों की तख्तियां कुछ किराए के शांति दूत कुछ बरगलाए मासूम बच्चे कुछ बहके नौजवान साथ ही दूसरों की धुन पर बजाने को डफली कुछ ज़हर बुझी कलम लाल स्याही वाले कलमकार  यह सब समान तैयार है । अब देर किस बात की चलो लोकतंत्र को बचाने निकले । मनोज  " नायाब "