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तुझे कागज़ तो दिखाना होगा

या तो यहां से जाना होगा या तुझे कागज़ तो दिखाना होगा । जो यहीं के हो तो यहीं रहो  गर लांघ कर सरहद आए हो  तो बिस्तर बांध के जाना होगा तुझे कागज़ तो दिखाना होगा । हां तुझको दिखलाना होगा कागज़ तुझको दिखलाना होगा जो हम वतन हो तो दिल में बिठाएंगे साथ बैठ कर तुम्हारे सेवईयां भी खाएंगे रात के अंधेरों में छुपकर आने वाला बता वापिस कब रवाना होगा तुझे कागज़ तो दिखाना होगा दिखाना होगा दिखाना होगा दिखाना होगा तुझको कागज़ तो दिखाना होगा म चंद कीड़ों को निकालने के लिए बीनने पड़ते हैं चावल सभी हमारे भात में कंकर बनने वालों  सरहद पार तेरा ठीकाना होगा । तुझे कागज़ तो दिखाना होगा । जो देश के रंग में रंग न सका तो रंगरेज़ कैसा धरा को मां कहने में इतना परहेज कैसा अब तो वंदे मातरम भी गाना होगा तुझे कागज़ तो दिखाना होगा । जाने कितने भीतर तक  अम्न को तुमने कुतरा है । भाईचारे की दरियादिली का नशा  अब जाकर हमें भी उतरा है । देश को टुकड़ों में बांटने वालों को अब तो सबक सिखलाना होगा तुझे कागज़ तो दिखाना होगा । जब गुलिस्तां को उजाड़ रहे थे सफेद लिबास वाले भेड़िये नायाब तब हम मौन नहीं थे । अपने बच्चों को हम...

ये भी तो हिंसा है

महकते चहकते  और लता की  कोरों पर लहकते  उपवन की शोभा बढ़ाते हैं ये पुष्प हर दिशा खुशबू फैलाते च्यक्षुओं को सहलाते हैं ये पुष्प । भ्रमर का प्रेम यही है यही तितलियों का यौवन है मधु मक्षिका करती  जिनका सदा रसपान । ये जीवित अंग है प्रकृति का  इनका तुम सम्मान करो कुछ टूट कर झरे पुष्प किसी के पैरों में न रौंदे जाएं उन्हें पहुंचा दें योथिचित स्थान  तब तक तो ठीक है , मगर स्पंदित आनंदित  प्रस्फुटित पल्लवित पुष्पों को तोड़कर तुम लताओं से नोचकर तुम हथेलियों में दबोचकर तुम क्या ये नहीं है वध इनका मां समान डालियों की गोद में खेलते  पिता समान तने के कांधे पर इठलाते इन नन्हे पुष्पों को अलग कर देते हो उनसे  कभी कभी ये मूक जानवर की  बलि जैसा लगता है मुझको कभी देवताओं के चरणों में  कर देते अर्पित कभी लगा देते हो गुलदान में और अगले दिन फैंक देते किसी कूड़ेदान में कभी हार बनाकर  किसी गले का  कर देते नष्ट जीवन उनका कभी स्वागत द्वार पर बिंध कर नुकीले तारों से तो कभी मुंडेर पर लटका देते कभी चौखट पर झूला देते ये पुष्प क्या इसीलिए बनाए प्रकृति ने...

ये किताबें

कितनी किताबें पढ़ ली  मैंने तुम्हारी नायाब उसमें आकाश छूने की तरकीबें थी हिमालय की गहराइयों का ज़िक्र भी था सोना चांदी  फूल तितलियां  चांद तारे 5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था सेंसेक्स की उछाल सौंदर्य चित्रण प्रेम प्रसंग हंसी ठट्ठे सब थे उसमें कागज़ की क्वालिटी शानदार है कवर पेज भी आकर्षक है बहुत अच्छा लिखते हो तुम  एक बात कहूँ नायाब बुरा नहीं मानना ये सब भरे पेट वालों के काम की है माफ करना  इन्हें लौटाना चाहता हूं ये किताबें मेरे काम की नहीं कोई ऐसी किताब भी  लिखी हो तो देना न जिसमें मेरे बच्चों की  भूख मिटाने की  स्कूल की फीस भरने की  बिटिया के ब्याह का  कर्ज लौटाने की टूटी दीवार पर प्लास्टर करवाने की बैंक वालों को  किस्तें लौटाने की तरकीब लिखी हो  फिर चाहे उसमें  मीटर अलंकार काफिया यति गति व्याकरण  न हो तो भी मेरे लिए अनमोल होगी ।  तुम्हारी उठ बैठ तो  नामचीन कवियों -शायरों से है पूछो न उन्होंने लिखी हो कोई ऐसी किताब  तो मुहैया करवाना ना  मैं तुम्हारी एहसान मंद रहूंगी ।

चांद को पानी में...

मानो चांद को पानी में उबाला जा रहा है  जैसे समंदर को लोटे में डाला जा रहा है ये इश्क़ कितना मुश्किल काम है यारों सुई की नोक से हाथी निकाला जा रहा है ग़ज़ब है कि बच्चे तो अनाथ घूम रहे हैं  और यहां कुत्तों को पाला जा रहा है । ऐसे कैसे आएगी सुबह तुम ही कहो अंधेरों को भर्ती कर उजालों को निकाला जा रहा है । वो फिर से नई कसमें खाने लगे हैं और पुराने वादों को टाला जा रहा है ।

बर्तनों पर नाम

तब कटोरियों में  होली पर दही बड़े  दीवाली पर मीठे शक्करपारे बेटे के ससुराल से आई हुई तीज की मिठाइयां  उघापन का प्रसाद सर्दियों में दाल के बड़े  बेटे के पास होने पर रसगुल्ले मल मास में गुड़ के गुलगुले  कुलदेवी का प्रसाद नई बहू के हाथों बनी पहली पहली रसोई , और तो और मुंडन या श्राद्ध में बची हुई जलेबी को भी बांटकर खाया जाता था । इसीलिए पूवजों द्वारा  बर्तनों पर हमेशा नाम खुदवाया जाता था । अब तो रिश्ते भी  डिस्पोजल जैसे हो चले हैं  बस काम में लो और फैंक दो । "जो इस्तेमाल करेंगें और फिर  डस्टबिन में डाल आएंगें । डिस्पोजल वाले लोग अब कहाँ  बर्तनों पर नाम खुदवाएंगें "। अक्सर घरों में गलती से रह गया पड़ोसी का नाम खुदा चम्मच मिल जाता था । इसीलिए भी  पूवजों द्वारा  बर्तनों  पर  नाम हमेशा  खुदवाया  जाता था । क्या परंपरा थी बर्तनों को भी  कभी खाली नहीं लौटाया जाता था । इसीलिए पूवजों द्वारा हमेशा  बर्तनों पर नाम खुदवाया  जाता था । मनोज नायाब ✍️

रावण

कितने अजीब है हम  कितने किंककर्तव्य विमूढ़ है  कितने डरपोक है हम जब रावण जीवित होते हैं  तब लड़ने को  नहीं निकलते घरों से  उस काल में भी  इस काल में भी  शांति के लिए करते रहे  हवन प्रार्थनाएं आरतियां स्तुतियाँ मंत्रोच्चार मगर हौसलों के शस्त्र नहीं  उठाए जाते तुमसे बस आकाश की ओर  ताकते रहते हैं करते रहते हैं त्राहिमाम त्राहिमाम प्रतीक्षारत रहते हैं  कोई राम आएगा और  रावणों का विनाश करेगा  रावण के समाप्त हो जाने के बाद  अब क्या जलाते हो  उसको तुम प्रति वर्ष ये नाटक क्यों  तुम्हारे सामने कितने रावण है आज भी तो लाखों सीताऐं शिकार हो रही है  नए युग के रावणों की टुकड़े हो कर भरी जा रही  सूटकेसों में उनसे लड़ते क्यों नहीं  क्यों नहीं जलाते  मंदिर तोड़ने वालों को उत्सवों पर पत्थर बरसाने वालों को स्त्रियों पर कुदृष्टि डालने वालों को भेष बदलकर रहते इर्द गिर्द मायावी और नकली शांतिदूतों को फिर सदियों बाद इनके  पुतले फूंकते फिरोगे आज क्यों नहीं निकलते  घरों से गुलाम रहना मंजूर है  हज़ार हज़ार ...

बच्चों के विवाह से माता पिता की गायब होती भूमिका

बच्चों के विवाह में गायब होती जा रही माता पिता की भूमिका   मनोज चांडक "नायाब " ✍️    एक समय था जब बच्चों की शादी कब करनी है किसके साथ करनी है यह निर्णय माता पिता लेते थे उनके निर्णय में जीवन भर के अनुभव की डिग्री होती थी लोगों के पहचान की गहरी ट्रेनिंग होती थी सामाजिक सम्बन्ध उनके लिए सूचना प्राप्ति का सशक्त माध्यम होता था । उनके द्वारा स्थापित किये गए रिश्तों की इमारत टिकाऊ और मजबूत होती थी मगर समय तेजी से बदलता गया और इस पूरी व्यवस्था में परिवर्तन आता गया ।  अब माता पिता सिर्फ इन्फॉर्म और कन्विन्स किये जाते हैं निर्णय बच्चे स्वंय ले लेते हैं इस पूरी व्यवस्था परिवर्तन के कई पहलू है कुछ सकारात्मक कुछ नकारात्मक  सिर्फ माता पिता के नज़रिए से सोचेंगें तो यह दकियानूसी और पुरानी सोच का प्रतीक हो सकती है और यदि बच्चों के नज़रिए से ही सोचेंगें तो यह माता पिता के अनुभवों की अधिकारों की अवेहलना करना हो जाएगा । मगर पहले यह समझते हैं की यह परिवर्तन कब कब कैसे कैसे आया ज़रा इसको समझते हैं  ध्यान से व्यवस्था परिवर्तन की इस प्रक्रिया को चरणबद्ध तरीके से  समझिए यह ...

सांप

बेशक चंमडी गोरी है मगर दिल के वो बड़े ही काले है कितना जलना पड़ा सूरज को तब जाकर ये उजाले हैं और तुम मुझे क्या डर दिखाते हो ज़हर का दोस्त मैंने अपनी आस्तीन में तुम जैसे कई सांप पाले हैं मेरी धीमी चाल का मज़ाक बनाने वालों सुनो ज़रा उसूलों पे चला हूँ इसलिए भी पैरों में इतने छाले हैं