Posts

Featured Post

तुझे कागज़ तो दिखाना होगा

या तो यहां से जाना होगा या तुझे कागज़ तो दिखाना होगा । जो यहीं के हो तो यहीं रहो  गर लांघ कर सरहद आए हो  तो बिस्तर बांध के जाना होगा तुझे कागज़ तो दिखाना होगा । हां तुझको दिखलाना होगा कागज़ तुझको दिखलाना होगा जो हम वतन हो तो दिल में बिठाएंगे साथ बैठ कर तुम्हारे सेवईयां भी खाएंगे रात के अंधेरों में छुपकर आने वाला बता वापिस कब रवाना होगा तुझे कागज़ तो दिखाना होगा दिखाना होगा दिखाना होगा दिखाना होगा तुझको कागज़ तो दिखाना होगा म चंद कीड़ों को निकालने के लिए बीनने पड़ते हैं चावल सभी हमारे भात में कंकर बनने वालों  सरहद पार तेरा ठीकाना होगा । तुझे कागज़ तो दिखाना होगा । जो देश के रंग में रंग न सका तो रंगरेज़ कैसा धरा को मां कहने में इतना परहेज कैसा अब तो वंदे मातरम भी गाना होगा तुझे कागज़ तो दिखाना होगा । जाने कितने भीतर तक  अम्न को तुमने कुतरा है । भाईचारे की दरियादिली का नशा  अब जाकर हमें भी उतरा है । देश को टुकड़ों में बांटने वालों को अब तो सबक सिखलाना होगा तुझे कागज़ तो दिखाना होगा । जब गुलिस्तां को उजाड़ रहे थे सफेद लिबास वाले भेड़िये नायाब तब हम मौन नहीं थे । अपने बच्चों को हम...

मुगलिया इतिहास

ये सुंदर विश्लेषण जानकारी हिंदू समाज तक पहुंचना अनिवार्य है! हर वर्ग और समाज में वीरों की गाथाओं को बताकर उन्हें गर्व की अनुभूति करानी चाहिए! खोयी हुई, या गायब की हुई इतिहास की एक झलक* 622 ई से लेकर 634 ई तक मात्र 12 वर्ष में अरब के सभी मूर्तिपूजकों को मुहम्मद ने तलवार से जबरदस्ती मुसलमान बना दिया! (मक्का में महादेव काबळेश्वर (काबा) को छोड कर!) 634 ईस्वी से लेकर 651 तक, यानी मात्र 16 वर्ष में सभी पारसियों को तलवार की नोंक पर जबरदस्ती मुसलमान बना दिया! 640 में मिस्र में पहली बार इस्लाम ने पांव रखे, और देखते ही देखते मात्र 15 वर्ष में, 655 तक इजिप्ट के लगभग सभी लोग जबरदस्ती मुसलमान बना दिये गए! नार्थ अफ्रीकन देश जैसे अल्जीरिया, ट्यूनीशिया, मोरक्को आदि देशों को 640 से 711 ई तक पूर्ण रूप से इस्लाम धर्म में जबरदस्ती बदल दिया गया! 3 देशों का सम्पूर्ण सुख चैन जबरदस्ती छीन लेने में मुसलमानो ने मात्र 71 वर्ष लगाए! 711 ईस्वी में स्पेन पर आक्रमण हुआ, 730 ईस्वी तक स्पेन की 70% आबादी मुसलमान थी! मात्र 19 वर्ष में तुर्क थोड़े से वीर निकले, तुर्कों के विरुद्ध जिहाद 651 ईस्वी में आरंभ हुआ, और 751 ईस्व...

कबीले

जो हिमालय सी चट्टान  हुआ करते थे कभी        वो रेत के टीले हो गए हैं  । जो गुजरते थे एक साथ हुजूम में कभी उनमें अब      अलग अलग कबीले हो गए हैं । जरूर कोई दीमक बन कर घुसा है दोस्तों की फसल में       हरे पत्ते अब पीले हो गए हैं ।

मर्ज़ी का सच

ऐसा भी नहीं हर जगह सच की शहादत हो रही है । ऐसा भी नहीं  कि झूठ की कोई इबादत हो रही है । सुनो सच आज भी बोले जा रहे हैं गाहे बगाहे मगर  हमें बस मर्ज़ी का सच सुनने की आदत हो रही है ।।

शाम कर दो ना

खोल कर ज़ुल्फ़ें ज़रा शाम कर दो ना तमाम मुस्कुराहटें मेरे नाम कर दो ना अपने रुखसार से पर्दा हटाकर तुम इन चरागों का काम आसान कर दो ना हम भी मशहूर होना चाहते हैं शहर में इश्क़ में ज़रा हमें भी बदनाम कर दो ना तुम मेरा छोटा सा ये एक काम कर दो ना । यहीं अमरीका यहीं चीन यहीं जापान कर दो ना । जिस मुल्क में जाता हूँ इसी की याद आती है यार हर मुल्क में एक आसाम कर दो ना ।

कैसे भूल जाऊं

विवाह के बाद लड़की का यानी मेरा सिर्फ मायका नहीं छुटा छूट गया वो मेरा कमरा  जिसको खूब सजाया करती थी वो मेरी अलमारी  जिसमें मैं बचपन के खिलोने रखती थी और मेरी पूरी दुनियां उस अलमारी में होती थी । वो पड़ोसी भी छूट गए  जिनसे कई बार झगड़े होते थे मगर मेरी विदाई में  फूट फूट कर  वो भी मेरी मम्मी पापा जितना रोये थे  घर के बाहर वो किराने की दुकान जहां से चॉकलेट ले लेती और कह देती पैसे पापा देंगें  वो मंदिर भी छूट गया  जिस में जाकर न जाने कितनी मन्नतें मांगा  करती थी । वो पीपल जो रोज़ सींचा करती थी वो तुलसी जहां रोज़ दिया जलती थी सब छूट गए वो गली के बाहर खेलते बच्चे वो सखियां वो सहेलियां  जिनके साथ हर साल  गणगौर पूजती थी अब सभी पीछे छूट गए  मेरा पुराना टूथ ब्रश मेरा टॉवेल  वो बिना ब्रांड के नेलपॉलिश  वो चूड़ियां जिनको  कभी पहना नहीं  मगर न जाने क्यों  कभी फेंका भी नहीं  सब तो मायके में छोड़ आई और सुनो कैसे कह देते हो तुम  मायके की बात ससुराल में  न किया करो मैं करती नहीं बस सहसा ही  जुबान पर आ जाती...

दीवार हूँ किला नहीं

बिछड़  सके जो अब तक  मिला नहीं कितने हमले सहुँ दीवार हूँ किला नहीं मेरा दुश्मन तो ये तीरगी है  हवाओं तुमसे तो मगर कोई गिला नहीं मेरे ज़ख्म और भी गहराते गए क्योंकि वक्त पर  किसी ने भी सिला नहीं  तेरा तीर आ रहा था मेरी ही तरफ देख फिर भी मैं अपनी जगह से हिला नहीं

चरागों का काम आसान कर दी न

खोल कर ज़ुल्फ़ें ज़रा शाम कर दो ना तमाम मुस्कुराहटें मेरे नाम कर दो ना अपने रुखसार से पर्दा हटाकर तुम इन चरागों का काम आसान कर दो ना हम भी मशहूर होना चाहते हैं शहर में इश्क़ में ज़रा हमें भी बदनाम कर दो ना