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खुरचन

रिश्तों के खाली भगोने में बाकी है अब भी थोड़ी सी यादों की जिद्दी सी खुरचन उतार फेंका था तुमने तो हम ओढ़े बैठे हैं अब भी  उम्मीदों की मैली सी उतरन चाहे जितना वक्त लगे पर हम जोड़ेंगे फिर से  रिश्तों की उधड़ी सी कतरन हम  समझ बैठे थे दूरी जिसे अस्ल में थी वो तो नायाब  नज़रों की भोली सी अनबन   तुम अब भी न लौटे तो हम रिश्तों के अस्थिकलश को  कर देंगे गंगा में तरपन । मनोज नायाब             

बिटिया

कब आ रही हो बिटिया ससुराल से तुम्हारा बचपन याद करता हूँ तो  भीग जाती है पलकें बिटिया कैसे पहली बार जब तुम्हारे  कान छिदवाए तो हम मुस्कुरा रहे थे तुम रोती हुई भी कितनी मासूम लग रही थी । पहली बार तूने जब स्कूल यूनिफार्म पहनी थी तो हमने काला टिका लगाया था  और मोबाइल से तस्वीरे उतारी  जब पहली बार तुम चलने लगी तो हम तालियां बजा कर नाचने लगे पहली बार स्कूल के annual function में stage पर तुमको परफॉर्म करते देखा जब पहली बार स्कूल की दौड़ में  मेडल लाई थी और बोली पापा  आंखें बंद करो surprize है तो हमारा सीना गर्व से चौड़ा हो गया था बिटिया और वो जायका अब भी मेरी जुबान पर है जो तुमने पहली बार मेरे लिए  चाय बनाई थी और हँसते हुए मैंने तुम्हारी मम्मी से कहा कि अब तुम्हारी जरूरत नहीं  मेरी बिटिया बड़ी हो गई है  मार्क्स खराब आने पर  कैसे मम्मी को पटाती की पापा को मत बताना  तुम ससुराल क्या गई घर काटने को दौड़ता है  बिटिया । कुछ दिन के लिए आ सकती हो क्या तुम कहो तो जवाई बाबू से  बात कर लेता हूँ । तेरी मां भी कल तुझे याद करते हुए रो पड़ी । जाने ...

बाढ़

हे ईश्वर ।  काश के तुमने   दिए होते जल को नेत्र  तो देख पाता   उसके तीव्र वेग में  समाए हुए खेत,  गहने गिरवी रख कर  बनाया गया   कच्चा मकान,  पसीने से सिंचित खड़ी फसल  एक जर्जर सा स्कूल बूढ़े बाबा की चाय की टपरी कच्ची बस्तियां शहीद की विधवा  की सिलाई की दुकान बूढ़ी दादी का  सब्जी का ठेला 24 गांव के लिए  एक मात्र अस्पताल मूक मवेशी अब्दुल मोची  राम शरण नाई की  तख्तियां जोड़ जाड़ कर बनाई हुई दुकान  काश जल को   दिए होते नेत्र  तो शायद रास्ता   बदल लेता वो  और लोग भूखों मरने   से बच जाते

हे ईश्वर

हे ईश्वर ।  काश के तुमने   दिए होते जल को नेत्र  तो देख पाता कि   उसके तीव्र वेग में  समा हुए खेत,  गहने गिरवी रख कर  बनाया गया   कच्चा मकान,  पसीने से सिंचित खड़ी फसल  एक जर्जर सा स्कूल बूढ़े बाबा की चाय की टपरी कच्ची बस्तियां शहीद की विधवा  की सिलाई की दुकान बूढ़ी दादी का  सब्जी का ठेला 24 गांव के लिए  एक मात्र अस्पताल मूक मवेशी अब्दुल मोची  राम शरण नाई की  तख्तियां जोड़ जाड़ कर बनाई हुई दुकान  काश जल को   दिए होते नेत्र  तो शायद रास्ता   बदल लेता वो  और लोग भूखों मरने   से बच जाते । मनोज नायाब

दस्ताने

नायाब -- उतारो इन्हें दस्ताने पहन कर हथेलियों की गर्माहट  कैसे महसूस करोगे सुनों ना दस्ताने जैसे  जिस्म वाले रिश्ते नहीं  चाहिए मुझे मुझे तो रिश्ते रूहानी चाहिए हथेलियां से हथेलियों का आलिंगन लरजती उंगलियों को बाहें बनाकर उनमें भर लेना बस इसीलिए मुझे रिश्ते रूहानी चाहिए । मुझसे मिलने आओ तो अपना जिस्म  उतार कर  आया करो । एक बात और तुम जब जिस्म  के साथ आते हो तो लौटते वक्त उसे साथ ले जाते हो मगर रूह के साथ  आते हो तो उसे  यहीं छोड़ कर जा सकते हो इसीलिए मुझे  रिश्ते रूहानी चाहिए सुनों अबकी बार सिर्फ जिस्म लेकर आऊंगा तुम्हे उसमें  भरकर  साथ ले जाऊंगा जब खुद को यहीं छोड़कर जाता हूँ तो वहां  कितना अकेला  हो जाता हूँ इसलिए इस दफा  जिस्म के खोल में  तुम्हारी रूह  भरकर  ले जाऊंगा । इसीलिए मुझे रिश्ते रूहानी चाहिए रूह के छूने पर छुअन लगती है जिस्म के छूने से चुभन  इतना ही नहीं रूह पानी है प्यास बुझाती है और जिस्म  धूप है प्यास बढ़ाती है इसीलिए मुझे रिश्ते  रूहानी चाहिए

खुरचन

रिश्तों के खाली  भगोने में बाकी है अब भी यादों की खुरचन तुमने तो कब का उतार फेंका मगर देखो हम अब भी ओढ़े बैठे हैं उम्मीदों की उतरन  उम्र लग जाए भले  पर जोड़ेंगे हम  फिर से  उधड़े रिश्तों की कतरन हम जिसको समझ बैठे थे दूरी अस्ल में थी  वो तो नज़रों की अनबन    तुम अब भी न लौटे तो  हमदम रिश्तों के अस्थिकलश को कर देंगे गंगा में तरपन मनोज नायाब            

हम है युवा

 हम है युवा देश के युवा   हम बदलेंगें समाज  हमसे ही रोशन है साथी   अपना कल और आज नायाब अपना कल और आज एक नहीं 52 खाँपे है हमसे दुश्मन भी कांपे है हमसा नहीं हुआ कोई दानी हम तो लोग बड़े अभिमानी हम गिरतों को सहारा देंगे जर्जर नावों को किनारा देंगे शिक्षा का उजियारा देंगे संस्कारों का नारा देंगे दुनियां के आकाश में होगी अब ऊंची परवाज़ आगे बढ़ता जाएगा  अपना प्यारा समाज हम है युवा देश के युवा  हम बदलेंगे समाज हमसे ही रोशन है साथी अपना कल और आज अपना कल और आज  चलो प्रेम का परचम लहराए छोटे बड़े का भेद मिटाएं न कभी किसी को कमी खलें हम सब को लेकर साथ चलें  हम महेश की है संतानें चलते अपना सीना ताने कठों में विष हम घर लेते नहीं किसी को पीड़ा देते हर प्रतिभा को अवसर देंगे हर हाथों को काम  लक्ष्य नहीं हासिल हो जब तक नहीं करेंगे आराम  सबके घर में हो खुशहाली  करेंगे ऐसा काज जन्म लिया है इस समाज में हमको बड़ा है नाज़ हम है युवा देश के युवा हम बदलेंगे समाज  नायाब हम बदलेंगें समाज हमसे ही रोशन है साथी अपना कल और आज हमसे ही रोशन है साथी अपना कल औ...