Friday, May 20, 2022

खुरचन

रिश्तों के खाली 
भगोने में
बाकी है अब भी
यादों की खुरचन

तुमने तो कब का
उतार फेंका
मगर देखो
हम अब भी ओढ़े बैठे हैं
उम्मीदों की उतरन

 उम्र लग जाए भले
 पर जोड़ेंगे हम
 फिर से
 उधड़े
रिश्तों की कतरन

हम जिसको
समझ बैठे थे दूरी
अस्ल में थी 
वो तो
नज़रों की अनबन
 
 तुम अब भी न लौटे तो
 हमदम
रिश्तों के अस्थिकलश
को कर देंगे
गंगा में तरपन

मनोज नायाब
 
 
 
 
 

 

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