रिश्तों के खाली
भगोने में
बाकी है अब भी
यादों की खुरचन
तुमने तो कब का
उतार फेंका
मगर देखो
हम अब भी ओढ़े बैठे हैं
उम्मीदों की उतरन
उम्र लग जाए भले
पर जोड़ेंगे हम
फिर से
उधड़े
रिश्तों की कतरन
हम जिसको
समझ बैठे थे दूरी
अस्ल में थी
वो तो
नज़रों की अनबन
तुम अब भी न लौटे तो
हमदम
रिश्तों के अस्थिकलश
को कर देंगे
गंगा में तरपन
मनोज नायाब
No comments:
Post a Comment
Pls read and share your views on
manojnaayaab@gmail.com