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Showing posts from April, 2024

ताबीज़

इश्क़ न किया होता तो यूँ बर्बाद न होता तू नहीं होती तो तेरा ख्वाब नहीं होता  हुक्मरानों की बात पे न जाते अगर तुम  शहर में कभी कोई फसाद नहीं होता वक्त रहते मरहम रख देते ज़ख्म पर मेरे तो नासूर में ये इतना मवाद नहीं होता  ये दवाइयां अगर इतनी महंगी न होती तो दुनियां में ताबीजों का कभी ईजाद नहीं होता तकरीरें करते हो इलेक्शन के वक्त तुम इतनी हम पूछते जब सवाल तो कोई जवाब नहीं होता

फासला

 मदारी की डुगडुगी और  चादर पर गिरते सिक्कों   के बीच का फासला   ही भूख है ।   पेशानी का पसीना  और मिलने वाले मेहनताने  के बीच की दूरी ही गुरबत है । पतझड़ के बाद  बसंत से पहले  झांकती हुई कोंपलें ही उम्मीद है । पलकों का  लजा कर गिरना और मचल कर उठने का फासला ही इश्क़ है । अधपकी सुखी फसल और आसमान में  मंडराते बादल के बीच की दूरी  ही आशाएं है । गुब्बारे बेचता हुआ एक बच्चा गुब्बारे बंधे बांस और बच्चे के  बीच की दूरी ही  लाचारी है ।

papa

पापा आप दीर्घायु हो यही है मेरा अरमान आपसे ही तो है ये छत ये दीवारें ये मकान। मम्मी के श्रृंगार आप ही से सलामत है पापा । आप से ही है मम्मी के चेहरे की मुस्कान ।       पापा अब कभी खिलोने की ज़िद न करूंगी । न ही पिज़्ज़ा के लिए कभी करूंगी परेशान  ।           दो सुखी रोटी खा लुंगी नहीं चाहिए पकवान । बस आप खुश रहो पापा यही है अरमान ।             जो मांगती हूँ वही ला देते हो आप पापा । घर के मंदिर के आप ही तो हो भगवान ।     जानती हूँ आप रात रात भर सो नहीं पाते Emiके लिए बैंक वालों के रोज़ फ़ोन आते घर का किराया स्कूल की फीस कैसे दूंगा यही रहती है न टीस हम सब मिलकर लड़ेंगे हर मुसीबत से पापा । कभी कम न होने देंगे आपका आत्म सम्मान ।              पापा आप के बिना तो अधूरी है हमारी दुनियां । बताओ आप के बिना कौन बुलाएगा मुझे मुनियाँ आप ही तो पूरे घर परिवार का अभिमान ।                   किसके पेट पर सोऊंगी किसको चिढ़ाऊंगी कौन बुलाएगा मुझे कभी पागल कभी शैतान ।                            जिन बच्चों के सर पे पिता का साया नहीं होता उनका इस दुनियां में कोई सहारा नहीं होता । आप ही हमारी पूजा आप ही हमारे भगवान ।  

राम गीत

सारे व्यजन मुझे तो ज्यों फीके लगे । स्वाद करुणा का जो है सिया राम में  बात ऐसी किसी भी नगर में नहीं बात अद्भुत निराली अवध धाम में । माना हम ये की भ्राता भरत तो नहीं भक्ति में ऐसी कोई शर्त तो नहीं भेष धरकर तो आओ कभी साधु का दे दो हमको तुम्हारी चरण पादुका गालियां सुनी सी है रास्ते रो रहे बाट तेरी प्रभु हम सभी जो रहे हर तरफ है अंधेरा नहीं रोशनी फर्क भी अब नहीं है सुबह शाम में प्रेम में अपना सब कुछ समर्पित किया ऐसे निष्काम भ्राता भरत ही तो है   प्रेम और भक्ति कोई अलग तो नहीं प्रेम भक्ति की पहली शर्त ही तो है सेवा रघुवर की जब से करने लगे हृदय हमारा लगे न किसी काम में

लौटा दो

जहां बचपन बीता है मेरा  वो ठाव मुझे लौटा दे । जहां बाल सखा रहते थे मेरे वो गाँव मुझे लौटा दे  । बारिश के पानी में चलती थी  चाहे सब कुछ लेले मेरा मेरी नाव मुझे लौटा दे । जून दोपहरी बिन चप्पल के  बेफिक्र घुमा करते थे । बैठ नीम की छांव तले  बातें खूब किया करते थे बिन whatsapp के ही  दोस्त इकट्ठा हो जाते थे डाल डाल पर चढ़कर बेर निम्बोली खाते थे फिर से जीना चाहता हूं बचपन मेरी धूप मुझे लौटा दे मेरी छाव मुझे लौटा दे  जहां बचपन बीता है मेरा  वो ठाव मुझे लौटा दो । जहां बाल सखा रहते थे मेरे वो गाँव मुझे लौटा दो  । बारिश के पानी में चलती थी वो चाहे सब कुछ ले लो तुम मेरा पर मेरी नाव मुझे लौटा दो । सोचा कि कुछ पल तो  आराम मिलेगा तुझको अपने हिस्से के बादल  सब सौंप दिए तुझको मुझको भी सफर करना है साथी मेरी धूप मुझे लौटा दो मेरी छाव मुझे लौटा दो । नाप लिया करते थे  धूप में सारी बस्ती पतंग लूटने दौड़ लगाते कैसी अजब थी मस्ती वो कभी न थकने वाले  मेरे पाँव मुझे लौटा दो  ।

दोहे

कर्म दान भक्ति करे जोय फल तोके ही होय जोय पंडित सुमिरन करे  तोहे पुण्य न होय । सहस्त्र घड़ी तु बावरे   पर निंदा में खोय । मुख में बाणी प्रेम की कोई ना बैरी होय । भजन से ही राम मिले भजन बड़ो अनमोल लगते मेले धरम के वहां पुण्य नहीं होय । अधर खोल तू हस बंदे हंसी मिले बिन मोल । झरे बोल जब जिव्हा से मीठी मिसरी घोल । पीले पात सदा झरे बरगद करे न शोक ।  जो आवे सो जावगो कौन सकेगो रोक ।।  जल तप कर बन बादली वन उपवन सब सींच । जो नर काम न आ सके है मानुष वो कीच ।। तीखा बोल भले चुभे करे बहुत ही लाभ । सुई कागज़ पर चुभे तब वा बने किताब  ।। अंधे मनुज के वास्ते   दर्पण है बेकार  बिन बुद्धि विद्या नहीं  सौ सौ बात इक सार सात छिद्र उर बंशी धरे निकरे मीठे बोल । कष्ट से जीवन निखरे कष्ट बड़ा अनमोल । औषध तो पीड़ा हरे करे न शोध विकार सतसंगती शोधन करे बुरे हो लाख विचार नख केश सो हठी नहीं जित काटो उग आय जिद बढ़ने की जो रखे कौन मिटाने पाय । सूर्य चंद्र सो पथिक नहीं पथ न कभी बिसराय जो पथ छोडे आपणो  उल्का सो जल जाय । धन यौवन दोय चंचला एक दिन तय अभिसान दोनों ही टिकते नहीं मत कर तू अभिमान । धरती सो सहिष्णु नहीं वृक्ष सो सहनशी