राम गीत


सारे व्यजन मुझे तो ज्यों फीके लगे ।
स्वाद करुणा का जो है सिया राम में 

बात ऐसी किसी भी नगर में नहीं
बात अद्भुत निराली अवध धाम में ।

माना हम ये की भ्राता भरत तो नहीं
भक्ति में ऐसी कोई शर्त तो नहीं

भेष धरकर तो आओ कभी साधु का
दे दो हमको तुम्हारी चरण पादुका

गालियां सुनी सी है रास्ते रो रहे
बाट तेरी प्रभु हम सभी जो रहे

हर तरफ है अंधेरा नहीं रोशनी
फर्क भी अब नहीं है सुबह शाम में

प्रेम में अपना सब कुछ समर्पित किया
ऐसे निष्काम भ्राता भरत ही तो है  

प्रेम और भक्ति कोई अलग तो नहीं
प्रेम भक्ति की पहली शर्त ही तो है

सेवा रघुवर की जब से करने लगे
हृदय हमारा लगे न किसी काम में

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