दोहे
कर्म दान भक्ति करे जोय
फल तोके ही होय
जोय पंडित सुमिरन करे
तोहे पुण्य न होय ।
सहस्त्र घड़ी तु बावरे
पर निंदा में खोय ।
मुख में बाणी प्रेम की
कोई ना बैरी होय ।
भजन से ही राम मिले
भजन बड़ो अनमोल
लगते मेले धरम के
वहां पुण्य नहीं होय ।
अधर खोल तू हस बंदे
हंसी मिले बिन मोल ।
झरे बोल जब जिव्हा से
मीठी मिसरी घोल ।
पीले पात सदा झरे
बरगद करे न शोक ।
जो आवे सो जावगो
कौन सकेगो रोक ।।
जल तप कर बन बादली
वन उपवन सब सींच ।
जो नर काम न आ सके
है मानुष वो कीच ।।
तीखा बोल भले चुभे
करे बहुत ही लाभ ।
सुई कागज़ पर चुभे
तब वा बने किताब ।।
अंधे मनुज के वास्ते
दर्पण है बेकार
बिन बुद्धि विद्या नहीं
सौ सौ बात इक सार
सात छिद्र उर बंशी धरे
निकरे मीठे बोल ।
कष्ट से जीवन निखरे
कष्ट बड़ा अनमोल ।
औषध तो पीड़ा हरे
करे न शोध विकार
सतसंगती शोधन करे
बुरे हो लाख विचार
नख केश सो हठी नहीं
जित काटो उग आय
जिद बढ़ने की जो रखे
कौन मिटाने पाय ।
सूर्य चंद्र सो पथिक नहीं
पथ न कभी बिसराय
जो पथ छोडे आपणो
उल्का सो जल जाय ।
धन यौवन दोय चंचला
एक दिन तय अभिसान
दोनों ही टिकते नहीं
मत कर तू अभिमान ।
धरती सो सहिष्णु नहीं
वृक्ष सो सहनशील
भूमि भार धरे जग को
पेड़ सदा फल दीन ।
जितनी जरूरत आपकी
उतना ही लो ख्वाब
इच्छा पूरी न होवे
मर गए सेठ नवाब
श्याम तुम्हारे नाम के
चर्चे देश विदेश
अहंकार मिट जाएंगें
कर्म रहेगा शेष
श्याम तुम्हारे नाम के
चर्चे देश विदेश
बाबा की कृपा हुए
तो उसकी ऐश ही ऐश
गोवर्धन सो पर्वत नहीं
वृंदावन सो धाम
परिक्रमा जो नर करे
बने उसी के काम
नीलांचल सो पर्वत नहीं
कामाख्या सो धाम
दर्शन नित मां का करे
बने उसी के काम
नदी किनारे बसा हुआ
शुक्रेश्वर एक धाम
लोटा भर जो अर्ध्य दे
वो खूब कमाए दाम
ना पूजे तो पत्थर है
पूजे तो भगवान
मन वचन से ध्यान धरे
तो मूरत में हो प्राण
घड़ी बंद जो कोई करे
समय बंद नहीं होय
झूठ छिपाया ना छिपे
सत्य का अंत न होय
सूरज जो बादल छिपे
क्षणिक उजाला खोय
कह नायाब बादल हटे
देख अंधेरा रोय
जड़ ना बदले पेड़ की
बदले पत्ती फूल
जो जड़ को हानि करे
मिट जावे वो मूल
बिजली चमके जोर से
क्षणिक उजाला होय
छोटो सो दीपक जले
देख अंधेरा रोय
नारायण से भक्त बड़ो
हरि से बड़ो हरिनाम
सागर मुंह बाए खड़ो
केवट आयो काम ।
राम जी के केवट आयो काम
वाणी को वीणा बना
मुख से मीठा बोल
दूर करेगा अपनों से
तेरे कड़वे बोल
रे भैया तेरे कड़वे बोलt
शब्द ताकत बड़ी हुए
मत न जोर से न बोल
बारिश में फसलां उगे
नहीं बाढ़ को मोल
परिधान पर सुई चुभे
बणे मनुज को लिबास
कड़ी बात से चरित बने
भले न आवे रास
अपने भाग को पुण्य तो
निज कर्म से ही होय ।
जै पंडित सुमिरन करे
तोहे पुण्य न होय ।
सहस्त्र घड़ी तु बावरे
पर निंदा में खोय ।
मुख में बाणी प्रेम की
कोई ना बैरी होय ।
श्रद्धा से ही राम मिले
भजन को मोल न कोय ।
लगते मेले धरम के
वहां पुण्य नहीं होय ।
अधर खोल तू हस बंदे
हंसी मिले बिन मोल ।
झरे बोल जो जिव्हा से
मीठी मिसरी घोल ।
संकट सब कट जावेगों
धरो हिये हरिनाम
साथी सब होते सुख के
दुख में बस हरिनाम
जग बिसराई देत है
रखियो मत ना आस
खाली बोतल बोझ लगे
बुझ जाए जब प्यास ।
याद करे न भोर में
सूरज हो आकाश
घिरे अंधेरा सांझ का
दीपक होता काश ।
सुन्दर
ReplyDeleteबेहतरीन
ReplyDeleteसभी का धन्यवाद
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