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Showing posts from May, 2022

दस्ताने

नायाब -- उतारो इन्हें दस्ताने पहन कर हथेलियों की गर्माहट  कैसे महसूस करोगे सुनों ना दस्ताने जैसे  जिस्म वाले रिश्ते नहीं  चाहिए मुझे मुझे तो रिश्ते रूहानी चाहिए हथेलियां से हथेलियों का आलिंगन लरजती उंगलियों को बाहें बनाकर उनमें भर लेना बस इसीलिए मुझे रिश्ते रूहानी चाहिए । मुझसे मिलने आओ तो अपना जिस्म  उतार कर  आया करो । एक बात और तुम जब जिस्म  के साथ आते हो तो लौटते वक्त उसे साथ ले जाते हो मगर रूह के साथ  आते हो तो उसे  यहीं छोड़ कर जा सकते हो इसीलिए मुझे  रिश्ते रूहानी चाहिए सुनों अबकी बार सिर्फ जिस्म लेकर आऊंगा तुम्हे उसमें  भरकर  साथ ले जाऊंगा जब खुद को यहीं छोड़कर जाता हूँ तो वहां  कितना अकेला  हो जाता हूँ इसलिए इस दफा  जिस्म के खोल में  तुम्हारी रूह  भरकर  ले जाऊंगा । इसीलिए मुझे रिश्ते रूहानी चाहिए रूह के छूने पर छुअन लगती है जिस्म के छूने से चुभन  इतना ही नहीं रूह पानी है प्यास बुझाती है और जिस्म  धूप है प्यास बढ़ाती है इसीलिए मुझे रिश्ते  रूहानी चाहिए

खुरचन

रिश्तों के खाली  भगोने में बाकी है अब भी यादों की खुरचन तुमने तो कब का उतार फेंका मगर देखो हम अब भी ओढ़े बैठे हैं उम्मीदों की उतरन  उम्र लग जाए भले  पर जोड़ेंगे हम  फिर से  उधड़े रिश्तों की कतरन हम जिसको समझ बैठे थे दूरी अस्ल में थी  वो तो नज़रों की अनबन    तुम अब भी न लौटे तो  हमदम रिश्तों के अस्थिकलश को कर देंगे गंगा में तरपन मनोज नायाब            

हम है युवा

 हम है युवा देश के युवा   हम बदलेंगें समाज  हमसे ही रोशन है साथी   अपना कल और आज एक नहीं 52 खाँपे है हमसे दुश्मन भी कांपे है हमसा नहीं हुआ कोई दानी हम तो लोग बड़े अभिमानी हम गिरतों को सहारा देंगे जर्जर नावों को किनारा देंगे शिक्षा का उजियारा देंगे संस्कारों का नारा देंगे दुनियां के आकाश में होगी अब ऊंची परवाज़ आगे बढ़ता ही जाएगा  अपना प्यारा समाज हम है युवा देश के युवा  हम बदलेंगे समाज हमसे ही रोशन है साथी अपना कल और आज चलो प्रेम का परचम लहराए छोटे बड़े का भेद मिटाएं न कभी किसी को कमी खलें हम सब को लेकर साथ चलें  हम महेश की है संतानें चलते अपना सीना ताने कठों में विष हम घर लेते नहीं किसी को पीड़ा देते हर प्रतिभा को अवसर देंगे हर हाथों को काम  लक्ष्य नहीं हासिल हो जब तक नहीं करेंगे आराम  सबके घर में हो खुशहाली  करेंगे ऐसा काज जन्म लिया है इस समाज में हमको बड़ा है नाज़ हम है युवा देश के युवा हम बदलेंगे समाज हमसे ही रोशन है साथी अपना कल और आज गीत रचयिता मनोज नायाब

मत चूको चौहान

 शिव दर्शन पाने को आतुर   सदियों से बैठा नंदी  सौ करोड़ का गौरव क्यों   बना हुआ अब भी बंदी तुष्टिकरण का आंखों पर  चढ़ा हुआ था मोतियाबिंद धर्म संस्कृति पर हमलों से घायल पड़ा हुआ था हिन्द कायरता का ओढ़ दुशाला पीती रही घी सत्ता उपवन अब भी खतरे में है  चीख रहा पत्ता पत्ता समय आ चला है अब  पुनः इतिहास रचाने का वक्त हो चला है फिर से  खोया गौरव पाने का कर लेना हिसाब अब की पैसा पाई आने का वक्त हो चला है अबकी सूद सहित लौटाने का  ये कोशिश आखिरी है  रख लेना तुम भी ये ध्यान दुश्मन चढ़ बैठेगा छाती पर अब की जो चुके चौहान । खुद भोले ने भेजा धरती पर अपना एक कुशल देवदूत वो वसूल कर लेगा अब की एक एक इंची एक एक सूत । गूंजेगा पूरी काशी में भोले का डमरू डम डम डम माँ गौरी की पायल अब गूंजेगी छम छम छम छम । मनोज नायाब  

अगर ख्वाब में मेरे

नायाब -- दिन गुलाबी और शामें  सुनहरी नहीं हो पाती अगरचे ख्वाब में मेरे  वो परी नहीं आती दिल जलों ने फेंके है  मेरी आगोश में पत्थर सीप क्या जाने झील यूं ही  गहरी नहीं हो जाती... तपना पड़ता है मुसलसल  अपने हिस्से की ठंडक छोड़कर बादलों तुम क्या जानो भोर यूं ही  दोपहरी नहीं हो जाती.... बस उलझना था  उनकी निगाहों से इनको बात सुनती ही नहीं ये आंखें यूं ही  बहरी नहीं हो जाती.... बड़े तूफान जिस्म पर झेले है चिलचिलाती धूप से खेले हैं ए मुसाफिर तुम क्या जानो पत्तियां यूं ही  हरी नहीं हो जाती....

तुम दोनों

आफताब तुम दोनों हो महताब तुम दोनों हो  यूं तो बगिया में फूल बहुत है ।  मगर गुलाब  तुम दोनों हो कोई बेहतरीन जोड़ी का  ख्वाब जो देखे तो वो ख्वाब तुम दोनों हो । नशा बहुत है जमाने में नई बोतल में पुरानी शराब  तुम दोनों हो । कसमें वादे रिश्ते नाते  किसी को ये chapter पढ़ने हो  तो वो किताब तुम दोनों हो । मनोज नायाब