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Showing posts from January, 2020

" केक्टस निकले ये तो "

वादियों से उड़कर कुछ कैक्टस के बीज फैल गए हैं हिंदुस्तान  के अलग अलग शहरों में पहले हमने उन्हें  नज़र अंदाज़ कर दिया मगर अब वो बड़े हो रहे हैं हमारी संस्कार की साड़ियां उलझ रही है उनमें हमारे व्यवस्था के पैरों को छलनी कर रहे हैं वो गुलाब के फूलों की उम्मीद में हमने उन बीजों को  पनपने दिया अपने हिस्से की खाद, पानी और धूप उनको दी  इसी चाह में की हमारी बगिया नए फूलों के नए रंगों से सज जाएगी मगर वो तो कंटीले केक्टस निकले । केक्टस में न फूल उगते हैं न खुशबू आती है ।  ऊपर ऊपर से काटो तो फिर उग जाते हैं इनको जड़ से ही उखाड़ना मुनासिब होगा । मनोज " नायाब " ( कवि-लेखक )

रुक बतलाता हूँ कौन हूँ बे

रुक बतलाता हूँ कौन हूँ बे कभी सवाया कभी पौन हूँ बे कभी उभरा कभी गौण हूँ बे तुलसी कबीरा जॉन हूँ बे  सुन प्रताप का भाला हूँ लष्मी बाई की ज्वाला हूँ गद्दारों का काल हूँ बे भारत माता की ढाल हूँ बे नक्सलियों का अंत हूँ बे वज्र से तीखा दंत हूँ बे तुकाराम सा संत हूँ बे  सुन दिनकर की कविता हूँ कुरुक्षेत्र की गीता हूँ बे । हर पुरुष में राम हूँ बे हर नारी में सीता हूँ बे । यग्योपवित की डोरी हूँ माँ यशोदा की लोरी हूँ बे  शिशुपाल की सौवीं गाली के इंतज़ार में मौन हूँ बे । रुक बतलाता हूँ कौन हूँ बे । कश्मीरी पंडित के निर्वासन की हमने पीड़ा झेली थी । तब भी चुप रह गए थे जब  तुमने खून की होली खेली थी । उस दिन हमने भी न गीत शांति के गाए होते । ज्यादा नहीं सब मिलकर के एक एक लट्ठ उठाए होते ।  ये न समझो की हमको पत्थर नहीं चलाने आते बम नहीं बनाने आते ये न समझो की हमको  बसें नहीं जलानी आती बंदूकें नहीं चलानी आती संस्कारों ने रोक रखा है बस इसीलिए मैं मौन हूँ बे रुक बतलाता हूँ कौन बे । टोपी में है जितने छेद । दिल में भी है उतने भेद। उजले कपड़े मैला मन नाम कन्हैया रखता है  । काम कंस का करता है । जैसे तेरे लक्षण है

रुक बतलाता हूँ कौन हूँ बे

रुक बतलाता हूँ कौन हूँ बे कभी सवाया कभी पौन हूँ बे कभी उभरा कभी गौण हूँ बे तुलसी कबीरा जॉन हूँ बे  सुन प्रताप का भाला हूँ लष्मी बाई की ज्वाला हूँ गद्दारों का काल हूँ बे भारत माता की ढाल हूँ बे नक्सलियों का अंत हूँ बे वज्र से तीखा दंत हूँ बे तुकाराम सा संत हूँ बे  सुन दिनकर की कविता हूँ कुरुक्षेत्र की गीता हूँ बे । हर पुरुष में राम हूँ बे हर नारी में सीता हूँ बे । शिशुपाल की सौवीं गाली के इंतज़ार में मौन हूँ बे । रुक बतलाता हूँ कौन हूँ बे । कश्मीरी पंडित के निर्वासन की हमने पीड़ा झेली थी । तब भी चुप रह गए थे जब  तुमने खून की होली खेली थी । जिस दिन हमने गीत शांति के न गाए होते । ज्यादा नहीं सब मिलकर एक एक लट्ठ उठाए होते । ये न समझो की हमको  पत्थर नहीं चलाने आते बम नहीं बनाने आते बसें नहीं जलानी आती बंदूकें नहीं चलानी आती संस्कारों ने रोक रखा बस इसीलिए मैं मौन हूँ बे रुक नायाब बतलाता है कौन हूँ  बे । मनोज नायाब टोपी में है जितने छेद । दिल में भी है उतने भेद। उजले कपड़े मैला मन

तुझे कागज़ तो दिखाना होगा

तुझे कागज़ तो दिखाना होगा । जो यहीं के हो तो यहीं रहो  गर लांघ कर सरहद आए हो  तो बिस्तर बांध के जाना होगा तुझे कागज़ तो दिखाना होगा । जो हम वतन हो तो दिल में बिठाएंगे साथ बैठकर गुनगुनी धूप में सेवईयां खाएंगे रात के अंधेरों में छुपकर आने वाला बता वापिस कब रवाना होगा तुझे कागज़ तो दिखाना होगा । चंद कीड़ों को निकालने के लिए बीनने पड़ते हैं चावल सभी हमारे भात में कंकर बनने वालों  सरहद पार तेरा ठीकाना होगा । तुझे कागज़ तो दिखाना होगा । जो देश के रंग में रंग न सका तो रंगरेज़ कैसा धरा को मां कहने में इतना परहेज कैसा अब तो वंदे मातरम भी गाना होगा तुझे कागज़ तो दिखाना होगा । जाने कितने भीतर तक  अम्न को तुमने कुतरा है । भाईचारे की दरियादिली का नशा  अब जाकर हमें भी उतरा है । देश को टुकड़ों में बांटने वालों को अब तो सबक सिखलाना होगा तुझे कागज़ तो दिखाना होगा । जब गुलिस्तां को उजाड़ रहे थे सफेद लिबास वाले भेड़िये नायाब तब हम मौन नहीं थे । अपने बच्चों को हमें ये बताना होगा तुझे कागज़ तो दिखाना होगा ।    
हम देखेंगे लाज़िम है कि हम भी देखेंगे वो दिन कि जिसका वादा है जो लोह-ए-अज़ल [1]  में लिखा है जब ज़ुल्म-ओ-सितम के कोह-ए-गरां  [2] रुई की तरह उड़ जाएँगे हम महकूमों [3]  के पाँव तले ये धरती धड़-धड़ धड़केगी और अहल-ए-हकम [4]  के सर ऊपर जब बिजली कड़-कड़ कड़केगी जब अर्ज-ए-ख़ुदा के काबे से सब बुत [5]  उठवाए जाएँगे हम अहल-ए-सफ़ा [6] , मरदूद-ए-हरम [7] मसनद पे बिठाए जाएँगे सब ताज उछाले जाएँगे सब तख़्त गिराए जाएँगे बस नाम रहेगा अल्लाह [8]  का जो ग़ायब भी है हाज़िर भी जो मंज़र [9]  भी है नाज़िर [10]  भी उट्ठेगा अन-अल-हक़ [11]  का नारा जो मैं भी हूँ और तुम भी हो और राज़ करेगी खुल्क-ए-ख़ुदा [12] जो मैं भी हूँ और तुम भी हो #फ़ैज़ अहमद फ़ैज़#hum dekhenge# हम देखेंगे