Saturday, January 11, 2020

रुक बतलाता हूँ कौन हूँ बे

रुक बतलाता हूँ कौन हूँ बे
कभी सवाया कभी पौन हूँ बे
कभी उभरा कभी गौण हूँ बे
तुलसी कबीरा जॉन हूँ बे 

सुन प्रताप का भाला हूँ
लष्मी बाई की ज्वाला हूँ
गद्दारों का काल हूँ बे
भारत माता की ढाल हूँ बे
नक्सलियों का अंत हूँ बे
वज्र से तीखा दंत हूँ बे
तुकाराम सा संत हूँ बे 
सुन दिनकर की कविता हूँ
कुरुक्षेत्र की गीता हूँ बे ।
हर पुरुष में राम हूँ बे
हर नारी में सीता हूँ बे ।
यग्योपवित की डोरी हूँ
माँ यशोदा की लोरी हूँ बे 

शिशुपाल की सौवीं गाली
के इंतज़ार में मौन हूँ बे ।
रुक बतलाता हूँ कौन हूँ बे ।



कश्मीरी पंडित के निर्वासन की
हमने पीड़ा झेली थी ।
तब भी चुप रह गए थे जब 
तुमने खून की होली खेली थी ।
उस दिन हमने भी न गीत शांति के
गाए होते ।
ज्यादा नहीं सब मिलकर के एक एक लट्ठ
उठाए होते ।


 ये न समझो की हमको
पत्थर नहीं चलाने आते
बम नहीं बनाने आते
ये न समझो की हमको 
बसें नहीं जलानी आती
बंदूकें नहीं चलानी आती
संस्कारों ने रोक रखा है
बस इसीलिए मैं मौन हूँ बे
रुक बतलाता हूँ कौन बे ।


टोपी में है जितने छेद ।
दिल में भी है उतने भेद।
उजले कपड़े मैला मन

नाम कन्हैया रखता है  ।
काम कंस का करता है ।
जैसे तेरे लक्षण है 
बदनाम यदुवंश करता है ।
सुनलो लेनिन की औलादें
यहां भी बाजू है फ़ौलादें
उसका बाल न बांका होगा
जिसके नटवर नागर है ।
भाग कहाँ तक भागेगा लेनिन
केरल के आगे तो सागर है ।
कुछ मेरे बहके साथी जो 
तेरे पाले में आए है
बस उनके ही कारण मौन हूँ बे
रुक बतलाता हूँ कौन हूँ बे ।














No comments:

Post a Comment

Pls read and share your views on
manojnaayaab@gmail.com