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Showing posts from July, 2017

Betiyan बेटियां

बेटियों से ही ईद है बेटियों से ही दीवाली है जिनके घर बेटियां नही वो घर खाली खाली है । तुझसे ही है इस उपवन की शोभा बिटिया ये पिता तो बस इस बगीचे का माली है । ये बेटियां ही तो जीवन का मधुर संगीत है यही मंदिर का भजन यही काबे की कव्वाली है । जब हंसती है खिलखिलाकर तो परी सी लगती है सच कहूं तो मेरी बेटियों की बात ही निराली है । तुम क्या जानो विदाई का दर्द ये तो उनसे पूछो "नायाब" जिसने नाज़ नखरों से बेटियां पाली है । वो उड़ गई चिड़िया बन कर किसी और देश में मगर संदूक में अब भी उसके बचपन की कानों की बाली है । "मनोज नायाब"

पुरानी बातें भूल क्यों नही जाते

मैं पानी हूँ "नायाब"आप मुझ में नमक की तरह घुल क्यों नहीं जाते । इतनी बरसात के बाद भी दीवारों के दाग धुल क्यों  नही जाते । और कितनी लाशें गिराओगे अब पुरानी बातें भूल क्यों नही जाते । ये फिक्र सियासतदारों को नही है की कुछ बच्चे स्कूल क्यों नही जाते । शहर को शहर से जोड़ देना क्या काफी है दिलों को जोड़ने वाले पुल क्यों नही बनाते ।
सुन ए ज़िंदगी तेरा यूं भी मुझ पे कोई कर्ज़ नहीं ज़िल्लतों से जीयी ज़िंदगी मौत है कोई फ़र्ज़ नहीं बेच डाले सपने जो रखे थे गिरवीे तुम्हारे पास अब कायदे से तेरा मुझ पे बाकी कोई कर्ज़ नही माना इश्क वहम है किसी का अपना हो जाने का लत है बुरी आदत है मगर इश्क कोई मर्ज नही । ये अंजाम तो इसका जरूरीे सा कायदा है नायाब जो खाए हो धोका तो इसमें कोई हर्ज नही ।
चांद के आंखों की कोर से कुछ काजल तर्जनी से कुरेद कर तुम्हे बुरी नज़र से बचाने के लिए लाया हूँ आजकल उपवन में फूल अक्सर तुम्हारा ज़िक्र किया करते हैं जलते हैं । वो उस कोने पे गुलाब के दोनों पौधे तुम्हारे जाने के बाद कानाफूसी किया करते हैं । मैंने फूलों को ये चुनौती दे डाली की देखते है उनके आने के बाद ये भंवरे किधर जाते हैं ।

ग़ज़ल

निकाल दूं कुछ देर नश्तर कलेजे से ताकि थोड़ा जिगर को भी आराम दें । खोली जो जुल्फे तो कितने  बे-रोज़गार हुए कोई ज़रा इन बादलों को भी काम दें । हमने ये सोचकर उठा दिया पर्दा चेहरे से सोचा इन भंवरों को भी कोई इनाम दें । तुम्हारी आमद का हवाला दे कब तक रोकूँ नायाब कोई तो उनको मेरी मौत का पैगाम दें । जब भी जिक्र हो तो अदब से सर झुका ले दुनियां चलो आओ इश्क को ऐसा अंजाम दें । "मनोज नायाब"

पायल खोल के आया चांद

  ज़िक्र किया जब भी गैरों का गुस्से से गरमाया चांद हवा ने आँचल ज्यों ही सरकाया तो थोड़ा सा शरमाया चांद पल भर को हम दूर हुए तो देखो कैसे घबराया चांद रात रात भर जाग जाग कर सुबह का ये अलसाया चांद रात है तिल भर बातेँ मण भर वक्त करो ना यूं ज़ाया चांद पहन सितारों के जेवर देखो मुझसे मिलने आया चांद नूर ग़ज़ब है उसके चेहरे का ज्यों कच्चे दूध से नहाया चांद कोई चुरा न ले मुझसे उसको गुल्लक में डालके आया चांद आंखें छत पे रख के आया नायाब को इतना भाया चांद कौन जुदा कर सकता तुझसे हो तुम तो मेरा हमसाया चांद कदमों की आहट न कोई सुनले पायल खोल के आया चांद दुनियां पूछेगी तो क्या बोलोगे चेहरे पे काजल क्यों फैलाया चांद दाग नही ये फैला है काजल आखिर किससे मिलके आया चांद सांझ की आंखे क्यों सिंदूरी इतनी मय कितनी पी के आया चांद ।
"हाँ हिंदुस्तान मेरे बाप का है " हाँ हिंदुस्तान मेरे बाप का है । ये हिंदुस्तान मेरे बाप का है ।। भजनों का है कीर्तन का है ये मंत्रों के जाप का है हाँ हिंदुस्तान मेरे बाप का है ये हिंदुस्तान मेरे बाप का है ।। सोमनाथ को जिसने लुटा ये गज़नी की औलादें हैं । गला हड्डियां अपने बदन की हम दाधीच की फ़ौलादें हैं । जो अपने वतन से करे गद्दारी यहां फंदा उसके नाप का है । हाँ हिंदुस्तान मेरे बाप का है ये हिंदुस्तान मेरे बाप का है  ।। सन 721 ई में कासिम फिर तुगलक, तैमूर और बाबर आया । यहां की मिट्टी में लाखों का खून उन दरिंदों ने बहाया । हमारा ही खून बहा है सुन 'राहत' यहां की मिट्टी में सना हुआ है लहू हमारा यहां 'नायाब"की मिट्टी में कहीं अमन से न रह पाती ये है इनकी किस्मत बेदर्दी से कत्ल किए थे बेदर्दी से लूटी अस्मत, ये असर उन बहनों की उन माताओं के श्राप का है, हाँ हिंदुस्तान मेरे बाप का है ये हिंदुस्तान मेरे बाप का है । ।