ज़िक्र किया जब भी गैरों का
गुस्से से गरमाया चांद
हवा ने आँचल ज्यों ही सरकाया
तो थोड़ा सा शरमाया चांद
पल भर को हम दूर हुए तो
देखो कैसे घबराया चांद
रात रात भर जाग जाग कर
सुबह का ये अलसाया चांद
रात है तिल भर बातेँ मण भर
वक्त करो ना यूं ज़ाया चांद
पहन सितारों के जेवर देखो
मुझसे मिलने आया चांद
नूर ग़ज़ब है उसके चेहरे का
ज्यों कच्चे दूध से नहाया चांद
कोई चुरा न ले मुझसे उसको
गुल्लक में डालके आया चांद
आंखें छत पे रख के आया
नायाब को इतना भाया चांद
कौन जुदा कर सकता तुझसे
हो तुम तो मेरा हमसाया चांद
कदमों की आहट न कोई सुनले
पायल खोल के आया चांद
दुनियां पूछेगी तो क्या बोलोगे
चेहरे पे काजल क्यों फैलाया चांद
दाग नही ये फैला है काजल
आखिर किससे मिलके आया चांद
सांझ की आंखे क्यों सिंदूरी इतनी
मय कितनी पी के आया चांद ।
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