Wednesday, July 12, 2017

पायल खोल के आया चांद

 

ज़िक्र किया जब भी गैरों का
गुस्से से गरमाया चांद

हवा ने आँचल ज्यों ही सरकाया
तो थोड़ा सा शरमाया चांद

पल भर को हम दूर हुए तो
देखो कैसे घबराया चांद

रात रात भर जाग जाग कर
सुबह का ये अलसाया चांद

रात है तिल भर बातेँ मण भर
वक्त करो ना यूं ज़ाया चांद

पहन सितारों के जेवर देखो
मुझसे मिलने आया चांद

नूर ग़ज़ब है उसके चेहरे का
ज्यों कच्चे दूध से नहाया चांद

कोई चुरा न ले मुझसे उसको
गुल्लक में डालके आया चांद

आंखें छत पे रख के आया
नायाब को इतना भाया चांद

कौन जुदा कर सकता तुझसे
हो तुम तो मेरा हमसाया चांद

कदमों की आहट न कोई सुनले
पायल खोल के आया चांद

दुनियां पूछेगी तो क्या बोलोगे
चेहरे पे काजल क्यों फैलाया चांद

दाग नही ये फैला है काजल
आखिर किससे मिलके आया चांद

सांझ की आंखे क्यों सिंदूरी इतनी
मय कितनी पी के आया चांद ।














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