बिकाऊ मिडिया bikau media

शब्दों को बांधकर,
सिक्कों की हथकड़ियों से,
लाद दिया है कागज़ की पीठ पर,
बिकाऊ पुरस्कार के कोड़ों से,
रिस रही अब कलम की स्याही,
अखबारों ने सजा रखी है,
समाचारों की मंडियां,
सुंघाकर शब्दों को क्लोरोफॉर्म
बिठा दिया बिकाऊ मैगजीनों
की जांघ पर
12 रु में लो इन शब्दों
के चीर हरण का आनंद
ए शब्द कौन बचाएगा तुम्हें
दफ़ना आए हैं
गालिबों को इतिहास की कब्र में
जला आए हैं प्रेमचंदों को
समय की चिता में ।

" मनोज नायाब "

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