यहाँ थूकना मना है yahan thukna mana hai

" यहाँ थूकना मना है "
मेरे मोहल्ले की एक दीवार पे लिखा था,
" यहाँ थूकना मना है "
मन तो कर रहा था उस दीवार पे
ये लिख दूँ की
जाओ थूकने का हौसला रखते हो तो उन
खादी वालों पे थूको
जिन्होनें देश की इज्ज़त को तार तार कर दिया
अपने कुकर्मों से देश को शर्म सार कर दिया ।
जाओ थूकने का शौक है तो उन पे थूको
जिन्होनें ईमान की सफेदी को
भ्रष्टाचार से मैला कर दिया ।
जहाँ होती थी मिठास शहद सी,
नेताओ की जात ने उसे कसेला कर सिया ।
थूकना है तो उन पे थूको
जिन्होंने कश्मीर में खून की नदियाँ बहाई
जिन्होंने सोमनाथ की दीवारें ढहाई
जिनको कैद के बाद भी दे दी रिहाई
उन्हीं लोगो ने खोदी विश्वास की खाई
इस दीवार पे थूकने से क्या होगा मेरे भाई
पीठ में छुरा घोंपने वाले उन बन्दों पे थूको
थाली में छेद करने वाले जयचंदों पे थूको
जिन्हें दिखती नहीं हिन्द की धमक दुनियां में
थूकना है तो ऐसे आँख वाले अंधों पे थूको ।
इस दिवार पे थूकने से क्या होगा


" मनोज नायाब "

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