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Vasiyat

एक पुराना मकान कुछ पीतल के बर्तन थोड़ी सी किताबें माँ की एक बनारसी साड़ी पिताजी के हाथ का एक चांदी का ताबीज़ दीदी की भेजी हुई स्पंज वाली राखी गुल्लक में कुछ सिक्के सर्दियों के लिए एक पुरानी रज़ाई और दोस्तों की बचपन की तस्वीरें मेरी वसीयत में बस यही दौलत है ।

Ghazal

ए चांद बदली का घूंघट तो हटा ये ज़माना तुझे देखना चाहता है । तैयार हैं कैद होने को ज़ुल्फ़ों में उनकी अगरचे जाल वो फैंकना चाहता है । ये फितरत नहीं तो और क्या है सांप की पंख दे दिए फिर भी रेंगना चाहता है । ये जज़्बा इश्क़ से ही पैदा हो सकता है नायाब पत्थर पर नाखून से चित्र उकेरना चाहता है । मनोज " नायाब "

Kya bura kiya

धुंए को आग लिख दिया क्या बुरा किया पत्ते को बाग लिख दिया क्या बुरा किया । माना लिखना था नेताजी मगर हमने जो नेताजी को नाग लिख दिया क्या बुरा किया । पैंतरे उनके देख कर लिखना था चालाक हमने घाघ लिख दिया तो क्या बुरा किया । सुबूत ए वफ़ा मांगने वालों को कलंक लिखना था जो हमने दाग लिख दिया तो क्या बुरा किया । ये मुल्क किसी खानदान की जागीर तो नहीं नायाब ने बेलाग लिख दिया तो क्या बुरा किया । मनोज " नायाब "

Ub lahor ko jalna hoga ,#pulwamaattack#

   "अब लाहौर को जलना होगा " बजवाकर ताली गणतंत्र दिवस पर फिर हो जाते हो खामोश । क्यों हर साल दिखाते हमें परेड में अग्नि सुखोई और ब्रह्मोस । नरम घास के छोड़ बिछौने अब अंगारों पे चलना होगा । इधर जल रही यदि चिताएं तो उधर लाहौर भी जलना होगा । दिखलाओ अपना रौद्र रूप तुम कर दो सेना को आदेश । भले छोड़ के आ जाना उधर धड़ों को पर नर मुंडों को लाना तुम देश । बिलख रही है माँ उस बेटे की उसके चरणों में कर देना पेश । लहू नहीं आएगा दुश्मन का जब तक खुले रहेंगें विधवाओं के केश । बड़ी उम्मीदों से बांधा था मोदी जी तेरे सर पे हमने सेहरा । बिन बदले के तुम जो आये तो  मत दिखलाना अपना चेहरा । और किसी दिन बनवा देना तुम पक्की सड़कें और लंबे पुल पहले निपटा दो इन सुअरों को दिल में चुभी है गहरी सूल । है 'नायाब' सिपाही तूं कलम का अब न बैठो यूँ चुपचाप । कांप उठे सीना दुश्मन का कर शब्दों की ऐसी पदचाप । मनोज 'नायाब"
तुम कहो तो भरी दोपहरी में पूनम का चांद दिखला दूं । बून्द भर ज़िंदगी में समंदर भर इश्क करना सिखला दूं । आ कभी आ मेरी आगोश में तुझे अपनी सांसो से पिघला दूं ।
न मिले मंज़िल तो पत्थर के मील बदलकर देखो हो वक्त बुरा तो कैलेंडर नहीं कील बदलकर देखो । कुछ बूंदों में तासीर ही नहीं होती प्यास बुझाने की ऐसे में सिर्फ पानी नहीं पूरी झील बदलकर देखो । ज़िंदगी के रुपहले पर्दे पर खरा उतरना चाहते हो तो सिर्फ किरदार नहीं पूरी रील बदलकर देखो । जो बनना हो मुहब्बत का असली सौदागर तुमको तो फिर इश्क़ में शर्तें नहीं पूरी डील बदलकर देखो । तमाम कोशिशों के बाद भी न आये दिल में उजलापन तो नायाब कपड़े नहीं एक बार नील बदलकर देखो ।

Tum hi kyu marte ho

हे आम इंसान तुम ही क्यों मरते हो । सरहद पर तोप से सूखे के प्रकोप से बाज़ारों में बम फटने से मज़हबी दंगों में कटने से सूखे की मार से बिजली के तार से जाति में बंटकर तो कभी ट्रेन से कटकर दबंगों के शोषण से बच्चे कुपोषण से मेलों की भगदड़ में ट्रैक पार की हड़बड़ में हे आम आदमी तुम्ही क्यों इस्तेमाल किये जाते हो । भाषण सुनाने के लिए मुद्दे भुनाने के लिए बस्तियां जलाने के लिए रैलियों में नारे लगाने के लिए सरकारी स्कूल में पढ़ने के लिए गंदे सीवर में सड़ने के लिए । मनोज "नायाब" (गुवाहाटी) 9859913535