Wednesday, March 20, 2019

Ghazal

ए चांद बदली का घूंघट तो हटा
ये ज़माना तुझे देखना चाहता है ।

तैयार हैं कैद होने को ज़ुल्फ़ों में उनकी
अगरचे जाल वो फैंकना चाहता है ।

ये फितरत नहीं तो और क्या है सांप की
पंख दे दिए फिर भी रेंगना चाहता है ।

ये जज़्बा इश्क़ से ही पैदा हो सकता है नायाब
पत्थर पर नाखून से चित्र उकेरना चाहता है ।

मनोज " नायाब "








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