दीवार हूँ किला नहीं


बिछड़  सके जो अब तक  मिला नहीं

कितने हमले सहुँ दीवार हूँ किला नहीं


मेरा दुश्मन तो ये तीरगी है 

हवाओं तुमसे तो मगर कोई गिला नहीं


मेरे ज़ख्म और भी गहराते गए

क्योंकि वक्त पर  किसी ने भी सिला नहीं 


तेरा तीर आ रहा था मेरी ही तरफ

देख फिर भी मैं अपनी जगह से हिला नहीं

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