वीथिका

समय हुआ 
कुछ टहनियों के 
वृक्ष से बिछड़ने का,
किंतु शोक नहीं, 
तिल तिल धूप में जलने से अच्छा
सूख कर निरा ठूंठ बनने से अच्छा
कुल्हाड़ी की  मूंठ बनने से अच्छा
वीथिका बन जाऊं
हवनकुंड की
आहुति कहलाऊँ
दे दूं अग्नि को आकार 
अच्छा है कि
हो जाए 
किसी की 
कामनाएं स्वीकार ।

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