बाबूजी ने तख़्सिम करी थी जब दौलत भाई भाई में
तब भगवान नज़र आया था उनको पाई पाई में ।
बचपन में लड़ जाया करते थे जिस भाई की खातिर
उन रिश्तों को धकेल दिया स्वार्थ की अंधी खाई में
यू बैठे बैठे सोचोगे तो कुछ भी हासिल नहीं होगा
शिद्धत से चाहोगे तो मिल जाएगा पर्वत भी तुमको राई में ।
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