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क्या रखा है

ज़रा डूब कर देख  किताबों में  शराब में क्या रखा है । रिश्ता तो रूह से  होना चाहिए  शबाब में क्या रखा है जाग कर ही  हासिल होगा कुछ ख्वाब में क्या रखा है । अंधेरा मिटाने को  ज़हनियत चाहिए आफताब में क्या रखा है । जैसी हो तुम्ही ठीक हो,  शक्ल बदलते महताब में क्या रखा है ।  ये चमक कहाँ से आई  चांद नुमा, देखें नकाब में क्या रखा है । तवज़्ज़ो उनके जज़्बात को  दे क़ारी नायाब में क्या रखा है । मनोज नायाब--:

दोहे dohe

घड़ी बंद जो कोई करे समय बंद नहीं होय झूठ छिपाया ना छिपे सत्य का अंत न होय सूरज जो बादल छिपे क्षणिक उजाला खोय कह नायाब बादल हटे देख अंधेरा रोय जड़ ना बदले पेड़ की बदले पत्ती फूल जो जड़ को हानि करे मिट जावे वो मूल बिजली चमके जोर से घर न ऊजला होय छोटो सो दीपक जले चहुं उजियारा होय नारायण से नर बड़ो हरि से बड़ो हरिनाम सागर मुंह बाए खड़ो केवट आयो काम । राम जी के केवट आयो काम  वाणी को वीणा बना  मुख से मीठा बोल  दूर करेगा अपनों से   तेरे कड़वे बोल रे भैया तेरे कड़वे बोल शब्द कि ताकत बड़ी हुए मत न जोर से न बोल बारिश में फसलां उगे नहीं बाढ़ को मोल परिधान पर सुई चुभे बणे मनुज को लिबास कड़ी बात से चरित बने भले न आवे रास अपने भाग को पुण्य तो निज कर्म से ही होय । जै पंडित सुमिरन करे  तोहे पुण्य न होय । सहस्त्र घड़ी तु बावरे   पर निंदा में खोय । मुख में बाणी प्रेम की कोई ना बैरी होय । श्रद्धा से ही राम मिले भजन को मोल न कोय । लगते मेले धरम के वहां पुण्य नहीं होय । अधर खोल तू हस बंदे हंसी मिले बिन मोल । झरे बोल जो जिव्हा से मीठी मिसरी घोल । मनोज नायाब के दोहे -- मनोज नायाब

दोहे

घड़ी बंद जो कोई करे समय बंद नहीं होय झूठ छिपाया झुठ छिपे सत्य का अंत न होय सूरज जो बादल छिपे कुछ पल को उजाला खोय कह नायाब बादल हटे देख अंधेरा रोय जड़ ना बदले पेड़ की बदले पत्ती फूल जो जड़ को हानी करे मिट जावे वो मूल मनोज नायाब

Dohe दोहे

नायाब -- अपने भाग को पुण्य तो निज धरम करम से होय । जै पंडित सुमिरन करे  तोहे पुण्य नहीं होय । सहस्त्र घड़ी तू बावरे   पर निंदा में खोय । मुख में बाणी प्रेम की तो कोई ना बैरी होय । श्रद्धा से ही राम मिले भजन व्यापार न होय । लगते मेले राम कथा के पर वहां पुण्य नहीं होय । अधर खोल तू हसले बंदे हंसी मिले बिन मोल । मुख से निकले बोल तो मीठी मिश्री घोल । मनोज नायाब--

मेरा गांव

नायाब -- मेरा गाँव/ मनोज नायाब ये जो मेरा गाँव है चिलचिलाती धूप में एक ठंडी सी छांव है रहने दो कुछ दिन  कारोबार की बातें अब तो बस यहां की  मिट्टी और मेरे पांव है ।