Dohe दोहे

नायाब --
अपने भाग को पुण्य तो
निज धरम करम से होय ।
जै पंडित सुमिरन करे 
तोहे पुण्य नहीं होय ।

सहस्त्र घड़ी तू बावरे 
 पर निंदा में खोय ।
मुख में बाणी प्रेम की
तो कोई ना बैरी होय ।

श्रद्धा से ही राम मिले
भजन व्यापार न होय ।
लगते मेले राम कथा के
पर वहां पुण्य नहीं होय ।

अधर खोल तू हसले बंदे
हंसी मिले बिन मोल ।
मुख से निकले बोल तो
मीठी मिश्री घोल ।

मनोज नायाब--






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