Posts

Showing posts from January, 2017

ज़िंदा है

अरे हाँ याद आया हम भी तो ज़िंदा है सांस रहते मरने के लिए थोड़े से शर्मिंदा है । चलो हम भी जीते हैं थोड़ी सांस लेते हैं मदद को हाथ बढ़ाते हैं थोड़े जज़्बात जगाते हैं चलो कुछ नारे लगाते हैं जुल्म पर आवाज़ उठाते हैं चलो फिर से जन्म सा लेते हैं जिन्दा होने का सुबूत देते हैं कोई दुर्घटना में कराह रहा है चलो अस्पताल पहुंचाते हैं जो किताबों में पढ़ा था चलो आज वही काम करते हैं उस वृद्ध को रास्ता पार कराते हैं जो फिल्मों में देखा किये हैं चलो उस अबला की आबरू बचाते हैं चलो फिर से माँ के पास बैठते हैं चल पिताजी से आठ आने मांगते हैं चल आज फिर बहन की चोकलेट चोरी छुपे खा जाते हैं चलो आज मोहल्ले की गर्भवती कुतिया को तेल से बना हलुआ खिलाते हैं चलो आज गाय की पीठ पर हाथ फिराते हैं चलो फिर दोस्तों से शर्त लगाते हैं चलो हार जाने पर मुकर जाते हैं चल फिर से नयी साइकल लेकर दोस्तों पर रौब जमाते हैं । चलो फिर बैट्री वाली बन्दुक से चोर पुलिस का खेल दोहराते हैं चल फिर कलकत्ते वाले मामाजी की दी हुई लाइट वाली घडी पहनकर इतराते हैं । चल मेले में 3 दोस्तों के साथ आठ आठ आने मिलाकर डेढ़ रु

ग़ज़ल

ढूंढों मिल जाऊंगा कहीं यहीं वहीँ तुम्हारे इश्क में हम खो गए है कहीं बरसों तुम्हारी खोज में इतने भटके की हम थे जहाँ हम हैं अब भी वहीँ जो आइनों के सामने रोज़ बुदबुदाते हो कह दो बात वो जो रह गई अनकही । जिंदगी हिसाबों में ही उलझ कर रह गई दिखा न पाए तुझे कभी प्यार की खाता बही

ग़ज़ल

हाथो में हो छुरिया तो गले मिलने का क्या फायदा ।अंजानो की तरह चलते रहो यही है सफर का कायदा । ए आसमां ये चाँद उधार देना चंद रोज़ के लिए मुझे तोहफा ये देने का मैंने कर दिया किसी से वायदा । ये रिश्ता इन साँसों का मोहताज़ ही नहीं है दोस्त जां से भले ही कर दो जिश्म को तुम अलायदा । मनोज नायाब

भार या वज़न

भार न बनो भार ढोया जाता है बनना है तो वज़न बनो क्योंकि वज़न उठाया जाता है ढोने में मज़बूरी है उठाने में ख़ुशी है जो ढोया जाता है वो गंतव्य तक पहुँच कर पटक दिया जाता है । और जो उठाया जाता है वो सलीके से इज़्ज़त से रखा जाता है, अब तय आपको करना है मज़बूरी से ढोये जाओगे या ख़ुशी ख़ुशी लोगों के सर माथे रखे जाओगे । मनोज नायाब

खेल

इस खेल को खेलने के लिए बहुत खेलना पड़ता है साहब यूँ ही खेल खेल में खेल लो वो ये खेल नहीं है बिछी हुई है पटरियां बस उस पर चले चलो ये वो रेल नहीं है । औरों के सहारे ऊपर उठे हम वो अमर बेल नहीं है जो कैद कर सके हौसला हमारा दुनिया में बनी अब तक ऐसी जेल नहीं हैं । निगाहों में भरकर भरोसा एक बार देख ए दुनियां क्या हममें सचिन सौरभ और क्रिष गैल नहीं है ।

भार और वज़न

भार न बनो भार ढोया जाता है बनना है तो वज़न बनो क्योंकि वज़न उठाया जाता है ढोने में मज़बूरी है उठाने में ख़ुशी है जो ढोया जाता है वो गंतव्य तक पहुँच कर पटक दिया जाता है । और जो उठाया जाता है वो सलीके से इज़्ज़त से रखा जाता है, अब तय आपको करना है मज़बूरी से ढोये जाओगे या ख़ुशी ख़ुशी लोगों के सर माथे रखे जाओगे । मनोज नायाब