अरे हाँ याद आया
हम भी तो ज़िंदा है
सांस रहते मरने के लिए
थोड़े से शर्मिंदा है ।
चलो हम भी जीते हैं
थोड़ी सांस लेते हैं
मदद को हाथ बढ़ाते हैं
थोड़े जज़्बात जगाते हैं
चलो कुछ नारे लगाते हैं
जुल्म पर आवाज़ उठाते हैं
चलो फिर से जन्म सा लेते हैं
जिन्दा होने का सुबूत देते हैं
कोई दुर्घटना में कराह रहा है
चलो अस्पताल पहुंचाते हैं
जो किताबों में पढ़ा था
चलो आज वही काम करते हैं
उस वृद्ध को रास्ता पार कराते हैं
जो फिल्मों में देखा किये हैं चलो
उस अबला की आबरू बचाते हैं
चलो फिर से माँ के पास बैठते हैं
चल पिताजी से आठ आने मांगते हैं
चल आज फिर बहन की चोकलेट
चोरी छुपे खा जाते हैं
चलो आज मोहल्ले की
गर्भवती कुतिया को
तेल से बना हलुआ खिलाते हैं
चलो आज गाय की पीठ पर
हाथ फिराते हैं
चलो फिर दोस्तों से शर्त लगाते हैं
चलो हार जाने पर मुकर जाते हैं
चल फिर से नयी साइकल लेकर
दोस्तों पर रौब जमाते हैं ।
चलो फिर बैट्री वाली बन्दुक से
चोर पुलिस का खेल दोहराते हैं
चल फिर कलकत्ते वाले मामाजी
की दी हुई लाइट वाली घडी पहनकर
इतराते हैं ।
चल मेले में
3 दोस्तों के साथ आठ आठ आने मिलाकर
डेढ़ रुपये में खरीदी हुई
रफ़ी और लता के गानों की किताब
खोलकर गुनगुनाते हैं ।
चल मिटटी से सने हाथों में
कंचों का डिब्बा फिर से बजाते हैं
वी रफ्फु की हुई बड़े भाई की निकर
हवाई चप्पल में घूमना बेफिकर
चलो फिर रद्दी कागज़ और पॉलीथिन
की गेंद बनाते हैं ।
चल स्कुल में टिफ़िन टाइम से पहले ही
पराठे आचार खा जाते हैं ।
आज एक बार और डांट से
बचने के लिए रिपोर्ट कार्ड पर
पापा के नकली हस्ताक्षर की
प्रैक्टिस आजमाते हैं ।
चल फिर से दूरदर्शन का
चित्रहार दिखाते हैं
चलो ये ख़ुशी की बात ही है
इतने दिनों बाद फिर ज़िंदा तो हुए
पहली बार खुद पर शर्मिंदा तो हुए ।
Wednesday, January 18, 2017
ज़िंदा है
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