उधार का लम्हा udhar ka lamha

उधार का लम्हा

ज़हर हमने भी जुदाई का पिया है
फिर भी हंसकर हर लम्हे की जिया है ।

ए सितारों माफ़ करना एक रात के लिए
वादा ये चाँद किसी को देने का किया है ।

नस्तर हाथ में लिए बैठे हो क्यों तुम
ज़ख्म हमने अभी अभी तो सिया है ।

ये दीवाना अंधेरों में घुट कर मरा होगा
इसकी मज़ार पे नहीं जल रहा कोइ दिया है ।

जाने की बात न कर तू अभी "नायाब"
ज़िन्दगी से हमने उधार ये लम्हा लिया है ।

" मनोज नायाब "

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