ये भी तो हिंसा है
और लता की
कोरों पर लहकते
उपवन की शोभा बढ़ाते हैं ये पुष्प
हर दिशा खुशबू फैलाते
च्यक्षुओं को सहलाते हैं ये पुष्प ।
भ्रमर का प्रेम यही है
यही तितलियों का यौवन है
मधु मक्षिका करती
जिनका सदा रसपान ।
ये जीवित अंग है प्रकृति का
इनका तुम सम्मान करो
कुछ टूट कर झरे पुष्प
किसी के पैरों में न रौंदे जाएं
उन्हें पहुंचा दें योथिचित स्थान
तब तक तो ठीक है ,
मगर स्पंदित आनंदित
प्रस्फुटित पल्लवित
पुष्पों को तोड़कर तुम
लताओं से नोचकर तुम
हथेलियों में दबोचकर तुम
क्या ये नहीं है वध इनका
मां समान डालियों की गोद में खेलते
पिता समान तने के कांधे पर इठलाते
इन नन्हे पुष्पों को
अलग कर देते हो उनसे
कभी कभी ये मूक जानवर की
बलि जैसा लगता है मुझको
कभी देवताओं के चरणों में
कर देते अर्पित
कभी लगा देते हो गुलदान में
और अगले दिन फैंक देते
किसी कूड़ेदान में
कभी हार बनाकर
किसी गले का
कर देते नष्ट जीवन उनका
कभी स्वागत द्वार पर
बिंध कर नुकीले तारों से
तो कभी मुंडेर पर लटका देते
कभी चौखट पर झूला देते
ये पुष्प क्या इसीलिए बनाए प्रकृति ने
इन्हें असमय नष्ट कर
छीन लें उनसे उनकी तरुणाई
यह भी तो कत्ल है सोचो तुम
तुम ये क्या करते हो
प्रकृति की दी हुई वस्तु
उसी को लौटा रहे हो
करना है तो
तुम अर्पित करो देवताओं को
श्रद्धा के सुमन
भक्ति की सुगंध
आस्था के रंग
मन की कोमलता
हृदय की सरलता
निस्वार्थ भावनाएं
अवांछित कामनाएं
वही तो मांगता है
ईश्वर तुमसे
तुम बस वही नहीं
अर्पण करते हो ।
तुम समझ लो
पुष्पों से नहीं होंगी
स्वीकार कभी प्रार्थनाएं
प्रार्थनाएं तब स्वीकार होंगी
जब तुम अर्पित कर दोगे
उनके चरणों में
हृदय के उपवन में
उगी हुई अनचाही
द्वेष की खर पतवार ।
ईर्ष्या का व्यापार
तुम अर्पित कर दो
अपने अहम को
स्व के वहम को
तुम अर्पित कर दो
लालच की पत्तियां
लोभ के फल
तुम अर्पित कर दो
अपने भीतर का छल
तुम अर्पित कर दो
कपट की छाल को
कुटिल सी चाल को
मन की कलुषता को
कर सको तो यह प्रयास
तुम प्रारंभ करो ।
इस शुभ कार्य को आज से
अभी से आरंभ करो ।
बहुत सुंदर
ReplyDeleteसुंदर
ReplyDeleteवाह!! कितनी सुंदर प्रार्थना होगी वह और कितना अनुपम समर्पण! साधु साधु!!
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteसादर।
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