कैसे भूल जाऊं
विवाह के बाद लड़की का यानी मेरा
सिर्फ मायका नहीं छुटा
छूट गया वो मेरा कमरा
जिसको खूब सजाया करती थी
वो मेरी अलमारी
जिसमें मैं बचपन के खिलोने
रखती थी
और मेरी पूरी दुनियां
उस अलमारी में होती थी ।
वो पड़ोसी भी छूट गए
जिनसे कई बार झगड़े होते थे
मगर मेरी विदाई में
फूट फूट कर
वो भी मेरी मम्मी पापा जितना रोये थे
घर के बाहर वो किराने की दुकान
जहां से चॉकलेट ले लेती
और कह देती पैसे पापा देंगें
वो मंदिर भी छूट गया
जिस में जाकर
न जाने कितनी मन्नतें मांगा
करती थी ।
वो पीपल जो रोज़ सींचा करती थी
वो तुलसी जहां रोज़ दिया जलती थी
सब छूट गए
वो गली के बाहर खेलते बच्चे
वो सखियां वो सहेलियां
जिनके साथ हर साल
गणगौर पूजती थी
अब सभी पीछे छूट गए
मेरा पुराना टूथ ब्रश मेरा टॉवेल
वो बिना ब्रांड के नेलपॉलिश
वो चूड़ियां जिनको
कभी पहना नहीं
मगर न जाने क्यों
कभी फेंका भी नहीं
सब तो मायके में छोड़ आई
और सुनो कैसे कह देते हो तुम
मायके की बात ससुराल में
न किया करो
मैं करती नहीं बस सहसा ही
जुबान पर आ जाती है
एक पूरी दुनियां थी मेरी
सब छोड़ आई हूं पीछे
विदा होते वक्त पलटने
भी नहीं दिया मुझे
बस कार की खिड़की
से आखिरी बार
देख पाई थी मैं
कैसे भुलाऊं तुम ही कहो
अपनी वो पूरी दुनियां ।
मैं तेरा पिता तो नहीं मगर पिता की तरह
तेरे जीवन में कोई कमी नहीं होने दूंगा ।
मैं तेरी मां तो नहीं बन सकता मगर मां की तरह
आंख में कभी नमी नहीं होने दूंगा ।
तुझे बिठाकर रखूंगा दिल के आसमान में ....
जो तेरे पैरों को चुभे ऐसी पथरीली ज़मी नहीं दूंगा ।
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