ठोकेंगे

हमारा वतन जो जलाओगे 

उन्माद जो तुम फैलाओगे 

पहले प्यार से रोकेंगे 

फिर भी न माने तो अब

ठोकेंगे हम ठोकेंगे ।


इंसानियत का कत्ल कर डाला था

कश्मीरी पंडित को घर से निकाला था

हाथ जोड़ कर करी थी फरियाद

नहीं आई भाई चारे की याद

अब आंख उठाकर जो देखोगे

तो हम ठोकेंगे...


हिंदुत्व को देकर गाली तुम

बजाओगे डफली ताली तुम

कमज़ोरी नहीं है हमारी शराफत

जो श्वान हम पर भोंकेंगे

तो उनको भी

हम ठोकेंगे । हम ठोकेंगे



हासिल हुए तख्त क्या एक रात में

नहीं मिलते हैं ताज खैरात में

बरसों जले है गुलामी की धूप में 

भीगे है ज़ुल्मों की बरसात में 

इज़्ज़त है ये वतन का ताज

जो इनको तुम यूँ उछालोगे

हम ठोकेंगे हम ठोकेंगे ।


पुलवामा हुआ और हुआ सोपियां

नहीं उछाली तुम्हारी कभी टोपियां

पहले अपना समझ के तुमको रोकेंगे

फिर भी न समझे तो तुमको

हम ठोकेंगे । हम ठोकेंगे ।


राम जो भारत के कण कण में बसा

वो हाज़िर भी है नाज़ीर भी

कितने बाबर सिकंदर आए

सब के सब ही मुंह की खाए

सब उठ गए हमको उठाने वाले

तुम क्या बूत उठाओगे ।


हम ठोकेंगे । हम ठोकेंगे ।

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