रावण

कितने अजीब है हम 

कितने किंककर्तव्य विमूढ़ है 

कितने डरपोक है हम

जब रावण जीवित होते हैं 

तब लड़ने को 

नहीं निकलते घरों से 

उस काल में भी 

इस काल में भी 

शांति के लिए करते रहे 

हवन प्रार्थनाएं आरतियां

स्तुतियाँ मंत्रोच्चार

मगर हौसलों के शस्त्र नहीं 

उठाए जाते तुमसे

बस आकाश की ओर 

ताकते रहते हैं

करते रहते हैं त्राहिमाम त्राहिमाम

प्रतीक्षारत रहते हैं 

कोई राम आएगा और 

रावणों का विनाश करेगा 

रावण के समाप्त हो जाने के बाद 

अब क्या जलाते हो 

उसको तुम प्रति वर्ष

ये नाटक क्यों 

तुम्हारे सामने कितने रावण है

आज भी तो लाखों सीताऐं

शिकार हो रही है 

नए युग के रावणों की

टुकड़े हो कर भरी जा रही 

सूटकेसों में

उनसे लड़ते क्यों नहीं 

क्यों नहीं जलाते

फिर सदियों बाद इनके 

पुतले फूंकते फिरोगे

आज क्यों नहीं निकलते 

घरों से

तुम्हें कोई अधिकार नहीं 

रावण जलाने का ।


मनोज नायाब ✍️

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