युद्ध
नरसंहार का सामान लादे
गरजते जहाज,
चीलें चीख रही आसमान में
नीचे खेतों में
बंदूकें बोई जा रही है,
हवाएं विकराल हुई ओढ़कर
बारूदी गंध का खोल,
इमारतें भयभीत हो
बार बार आकाश ताकती,
नदियां अपने पानी
को कलंकित होने से बचाने हेतु
कूद रही सागर में
मानो जौहर कर रही हो
धरती पीट रही माथा स्वयं का
की फिर मचेगा हाहाकार
फिर गूंजेगी चीत्कार
फिर बिछेंगी लाशें
फिर अनाथ होंगे बच्चे
फिर विधवाएं करेंगी विलाप
फिर गूंजेगा मर्सिया
जानते हो ये सब क्यों हो रहा है
यह सब हो रहा है
सिर्फ सीमाओं पर लगी
कंटीली बाड़ को थोड़ा
खिसकाने के लिए
सोच रहा हूँ इस हासिल की
कीमत कुछ ज्यादा नहीं है ?
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