जब भी कोई बुरी नज़र मेरे घर पर आती थी

जब भी कोई बुरी नज़र मेरे घर पर आती थी
यहां एक मां रहती है ये देखकर लौट जाती थी

आज कर्कश अलार्म से उठना होता है रोज़ मुझे
मगर बचपन में किसी राजकुमार से कम न थे 
मां जब सवेरे माथा चूमकर उठाती थी ।

रोजाना कन्हैया की कहानियां सुनाकर मुझे सुलाती थी
सोने के बाद भी माँ मेरा माथा चूमकर ही जाती थीं ।


आज  inxiety के कारण नींद की गोलियां खाता हूं तब भी नहीं सो पाता हूँ ।
ग़ज़ब की डॉक्टर थी मेरी माँ बस थपकियाँ दे कर मिनटों में सुलाती थी 


अब तो जो खाते है सोशल मीडिया पर रोजाना दिखाते हैं
एक वो वक्त था जो किसी की नज़र न लगे 
इसलिए मुझे मां मेरी दूध भी आँचल ढककर पिलाती थी

घी तेल के कनस्तर भरे पड़े हैं मगर खा नहीं सकते
एक वो दौर था जब सबसे नज़रें बचाकर मेरी माँ
सबसे ज्यादा मेरी रोटियों पर घी लगाती थी ।

उस वक्त पिज़्ज़ा और बर्गर तो नहीं थे मगर माँ
सर्दियों में गोंद के मोटे मोटे लड्डू बनाती थी

माँ कम पढ़ी लिखी थी उसको गणित नहीं आती थी
4 रोटी खिलाकर मां मेरी 3 गिनवाती थी

अब बीमार होता हूँ तो गर्म पानी भी नहीं मिलता 
पहले जुखाम भी हो जाता तो माँ मेरी तुलसी का
काढा बनाती थी ।

जब पिताजी पीटने को दौड़ते थे तो 
मां ही मुझे बचाती थी ।

40 के पार हो गया फिर भी मां कहती है 
हाल तो टाबर है । अभी तू बच्चा है 
यही कहकर दुनिया की तोहमत से बचाती थी


मां ने कभी कोई जॉब नहीं कि मगर फिर 
भी जाने कहाँ से पैसे लाती थी 
मुश्किल समय में बाबूजी के हाथ में बिन मांगे
पैसे थमाती थी ।

राखी तीज और पीहर से जो थोड़ी आमदनी जुटा लेती थी
पर मां उस को भी हम बच्चों की परवरिश में लुटाती थी

जीवन की बगिया का मां बाप से बड़ा कोई माली नहीं होता
जाने कितनी भी तंगी हो मां का खजाना कभी खाली नहीं होता ।

कोई कविता मां बाबूजी के त्याग को शब्दों में बांध नहीं सकती है ।

कोई बाधा इस पावन नदी के प्रवाह को पत्थरों से सांध नहीं सकती है ।

कहाँ ढूंढते फिरोगे कहाँ करोगे भगवान की तलाश
खुद भगवान आकर बैठते हैं मां के चरणों के पास

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