ग़ज़ल पिता
करके देख हर्ज क्या है एक बार आज़माने में
खामोश रहने से बड़ा हुनर नहीं ज़माने में ।
लुटा दी जीवन भर की पूंजी बिटिया की शादी में
उम्र लग गई थी बाप को चार पैसे कमाने में ।
बड़ी मेहनत से जुटाता है एक बाप भोजन की थाली
पसीने की खुशबू है इसके हर एक दाने में ।
मां बाप बनोगे तो खुद ही जान जाओ
खुश होते है बच्चों पर सब कुछ लूटाकर पाने में ।
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