Thursday, February 29, 2024

सांसों की EMI

छोटी सी सीख है हो सके तो सबको बताइए
दुश्मन कम जीवन में दोस्त ज्यादा बनाइये

इससे पहले की सांसों की कुर्की करदे खुदा
गुनाहों की emi नेकी की किश्तों से चुकाईये

कर्मों के चेक तुम्हारे बाउंस न हो जाए कहीं
भलाई के बैलेंस को थोड़ा तो और बढ़ाइए

ईमान के ही नोट ही चलते हैं सदा वहां
झूठ के सिक्कों को व्यर्थ न बजाइये

कविता को मेरी तुम तो स्कैनर बना के रख
मुस्कुराहटें सभी को upi करते जाइये 

सांसों की नोटबन्दी अब हुई कि तब हुई
चमड़े के इस खोल पर इतना न इतराईये

पद और अहंकार ने कितने दोस्त छीन लिए 
भूलकर कडवाहटें अब तो हाथ बढ़ाइए ।

मनोज नायाब--

2 comments:

Pls read and share your views on
manojnaayaab@gmail.com