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Showing posts from February, 2024

सांसों की EMI

छोटी सी सीख है हो सके तो सबको बताइए दुश्मन कम जीवन में दोस्त ज्यादा बनाइये इससे पहले की सांसों की कुर्की करदे खुदा गुनाहों की emi नेकी की किश्तों से चुकाईये कर्मों के चेक तुम्हारे बाउंस न हो जाए कहीं भलाई के बैलेंस को थोड़ा तो और बढ़ाइए ईमान के नोट ही चलते हैं सदा वहां झूठ के सिक्कों को व्यर्थ न बजाइये कविता को मेरी तुम तो स्कैनर बना के रख मुस्कुराहटें सभी को upi करते जाइये  सांसों की नोटबन्दी अब हुई कि तब हुई चमड़े के इस खोल पर इतना न इतराईये पद और अहंकार ने कितने दोस्त छीन लिए  भूलकर कडवाहटें अब तो हाथ बढ़ाइए । मनोज नायाब--

हवाओं पे एतबार मत करना

नायाब -- दिल होता है कांच का हर किसी से प्यार मत करना बड़ी हसरतों से बुनी है इश्क़ की ओढ़नी तुम इसको तार तार मत करना हो लाख तूफानों से याराना मगर जलता चिराग जो हाथो में हो तो हवाओ पर एतबार मत करना मुझे अच्छे लगने है धोखे दोस्ती में अटका रहने दो भीतर ही  ये खंज़र दिल के पार मत करना । दिल करे ज़ख्म देने का तो कलेजा हाज़िर है  तुम मगर कभी पीठ पे वार मत करना 

बड़ा आदमी कैसे बनें

नायाब -- अपनी जिव्हा पे नाम लिखो  किसी रसूखदार के तलवे का । बड़ा आदमी कैसे बनें सुन राज बताऊं इस जलवे का । दिखलाओ फ़र्ज़ी देश प्रेम लगाओ गांधी का फ़ोटो फ्रेम करो बात अहिंसा की और फिर इंतज़ाम करो किसी बलवे का । बड़ा आदमी कैसे सुन......     राज बताऊं जलवे का      मोटी सी एक फ़ाइल बनाओ बाढ़ राहत के फ़र्ज़ी आंकड़े सजाओ मंत्री जी को  हिस्सेदार बनाकर  मोटा फण्ड allocat कराओ लो बस जुगाड़ हो गया हलवे का । बड़ा आदमी कैसे सुन...        राज बताऊं जलवे का....          एक नकली सीमेंट से   घटिया सा पुल बनाओ  सारा पैसा बाटकर खा जाओ  उद्घाटन से पहले ही वो गिर जाए  तो और कमाई की खातिर उठाने का लो ठेका पाओ फिर उस मलबे का

Ram geet

नायाब -- सारे व्यजन मुझे तो ज्यों फीके लगे । स्वाद करुणा का जो है सिया राम में  बात ऐसी किसी भी नगर में नहीं बात अद्भुत निराली अवध धाम में । माना हम ये की भ्राता भरत तो नहीं भक्ति में ऐसी कोई शर्त तो नहीं भेष धरकर तो आओ कभी साधु का दे दो हमको तुम्हारी चरण पादुका गालियां सुनी सी है रास्ते रो रहे बाट तेरी प्रभु हम सभी जो रहे हर तरफ है अंधेरा नहीं रोशनी फर्क भी अब नहीं है सुबह शाम में प्रेम में अपना सब कुछ समर्पित किया ऐसे निष्काम भ्राता भरत ही तो है   प्रेम और भक्ति कोई अलग तो नहीं प्रेम भक्ति की पहली शर्त ही तो है सेवा रघुवर की जब से करने लगे हृदय हमारा लगे न किसी काम में

चाँद को तलूँगा

नायाब -- चांद को तलूँगा आसमान की कढ़ाई में प्रेम को बांध लूंगा महज़ आखर ढाई में ये जनवरी की सर्दी और ये अकेलापन शामें गुजरती अलाव में सुबह रजाई में क्या खूब इश्क़ निभाया है ज़ालिम ने  हसरतें कुए में और ख्वाब सभी खाई में ये हसीनाओं का चक्कर बेकार है कुछ नहीं झगड़ा करवा गई भाई भाई में