Posts

Showing posts from November, 2023

गीत

संस्कृति है चूल्हे में परंपराएं पानी में रिश्तों को भी तोलते हैं अब लाभ हानि में चाचा चाची ताऊ वाला प्यार कहीं खो गया पश्चिम की संस्कृति का बीज कौन बो गया  एक बच्चे वाला ट्रेंड जब से ये आ गया मौसी बुआ फूफा ये तो सबको ही खा गया  दादी के भजन देखो गुम कहीं हो गए सुबह को गंगा गाने वाले सुर सो गए रातों को रामायण की चौपाई सुनाते थे कांधे पे बिठा के हमें मेले में घुमाते थे  दीवाली को एक बार कपड़े सिलाते थे चार आने वाली हमें कुल्फी खिलाते थे दीपक जलाने वाले मोमबत्तियां बुझाएंगे Dj वाले बाबू कहाँ लोक गीत गाएंगे दिन वो पुराने अब फिर नहीं आएंगें बातें अब रह गई किस्सों में कहानी में संस्कृति है चूल्हे में परंपराएं पानी में

आखिरी बार

इन बैलों के पीठ पर  आखिरी बार हाथ फिरा रहा हूँ  पुरखों की इस माटी पर ये आखिरी फसल होगी आखिरी बार इस जमीन  पर बैठकर प्याज़ के साथ  रोटी खा रहा हूँ मैं कुदाल ये फावड़ा ये हल क्या करूँगा इनका कल इस माटी पर मेरे पसीने  की आखिरी बून्द है ये क्योंकि अगले वर्ष बिटिया की शादी है और खेत बेचना पड़ेगा । मनोज नायाब:-

हर कोई दोस्त नहीं होता

मैं चला तब काफिला था  हुजूम हुआ करते थे दोस्तों के साथ नहीं छोड़ेंगे एक दूसरे का ये कसमें भी खाया करते थे हम कुछ को रास्ते में मिल गए कई ललचाने वाले खूबसूरत मंज़र  तो वो हाथ छुड़ा कर वहीं रुक गए, कुछ ने तो अलग रास्ता ले लिया  इसलिए कि आगे निकल सके, कुछ ने तो बदल लिए अपने हम सफर  और वो किसी और के साथ हो लिए कुछ दूर चलकर जब  पीछे मुड़कर देखा तो चंद लोग रह गए थे  अब समझ आया कि दोस्तों के काफिले नहीं हुआ करते  सच्चे दोस्त बस थोड़े से होते हैं ज़िंदगी के सफर में मिलने वाला  हर कोई दोस्त नहों होता  वो तो बस हमराही होते हैं वो कभी भी अपनी राहें  बदल सकते है  दोस्ती बिलोने की तरह होती है पतीला भरा हुआ होता है  मगर जब मथो तो  हथेली भर रह जाता है सच भी तो है पेड़ पौधों की पहचान  पत्तों की भीड़ से नहीं बल्कि फूलों से होती है । मनोज नायाब-: 

राम आए हैं

जैसे गोकुल में  सदियों से शाम आए हैं राम आए हैं  जैसे राधा रानी के मानो घनश्याम आए हैं  राम आए हैं  तूने सबरी के भी तो  झूठे बेर खाएं हैं ,  राम आए हैं राम आए हैं आए हैं राम आए हैं आज भारत की भूमि  देखो धन्य हो गई  मैं तो राम जी के आने की  खुशी में खो गई सूखी अवध पूरी में  जैसे मेघ छाए हैं, राम आए हैं ऐसा भारी था वियोग  पूरे नगरी में शोग पिता दशरथ राम को पुकारते रहे वो तो महलों के द्वार को निहारते रहे न तो रामजी आए थे ना ही आया संदेशा गहरी नींद में सो गए वो तो फिर हमेशा  मात कौशल्या ने भी विरह के गीत गाए हैं, राम आए हैं  हाथ हमने थे जोड़े  पांव हमने पड़े वो विधर्मी तो  अपनी ही ज़िद पे अड़े राम भक्तों पे उसने जो गोली चलवा दी थी हम राम के दीवाने  लाशें अपनी बिछा दी थी कार सेवकों के लहू अब  काम आए हैं , राम आए हैं