Thursday, July 6, 2023

ग़ज़ल


आंखों में तूफा और ख्वाब है सफीने में
फासला कम क्यों है इतना मरने और जीने में

कातिल को रिहाई तो रिंदों को सज़ा क्यों
रखना था फर्क तो लहू और शराब पीने में

खत लहू से बहुत लिखे थे हमने भी तो मगर
दिल की जगह पत्थर रखा था उसके सीने में

उसके हिस्से में दौलत मेरे हिस्से में ग़ुरबत क्यों 
जाने क्या फर्क था उसके और मेरे पसीने में 

मैं आसमानों की बुलंदी को छू न सका 
क्योंकि दरारें ही दरारें थी मेरे घर के ज़ीने में 


No comments:

Post a Comment

Pls read and share your views on
manojnaayaab@gmail.com