कैकई ने जब राहों में कांटे बो दिए सभी
उजाले अवध ने मानों सारे खो दिए सभी
चरणों के छाले राम के जब फूटने लगे
पैरों तले कंकर भी मानो रो दिए सभी
फूल बनके बिछना था राहों में राम की
धूल बन के बिछना था राहों में राम की
नगर का हर वाशिंदा खुद से बोल रहा था
बिन राम के अयोध्या नहीं है काम की
दिल में एक सागर था आंखों में प्यास थी
उड़ते हुए बादल के टुकड़े से आश थी
भरे हुए सागर में तिश्नगी से मर गई
बहती हुई नदी में मछली की लाश थी ।
No comments:
Post a Comment
Pls read and share your views on
manojnaayaab@gmail.com