Friday, May 28, 2021

धरती और पानी


ये धरती और पानी का है अद्भुत प्रेम ये प्यारे
पनाह देती है सबको ये वो मीठे हो या हो खारे...

पहुंचना जल का बादल तक नहीं है ये करिश्मा
जो बेची ठंडक आँचल की खरीदी सूरज से ऊष्मा
कभी उफ्फ तक नहीं करती उसे कहते हैं धरती माँ
वहां पहुंचाया तुझको तो जहां तेरी जरूरत थी
आदर अंतस में भरकर कर इसके गीत तू गा रे ....


जो थककर चूर होता है तो इसकी की गोद में सोता
फिर सागर को गहराई पे व्यर्थ अभिमान क्यों होता
धरती की गोद में पलता इसकी के आँचल में रोता 
नदी नाले समंदर तालाब और ये दरिया
अगर धरती न होती तो कहाँ जाते ये सारे के सारे....


तेरे आमद को ये धरती भी सदा बैचैन रहती है


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