चुनावी कीर्तन में तुम प्रसाद हो जनता ।
खत्म हुआ मज़मा तो बेस्वाद हो जनता ।
कभी बिकते प्रति किलो
कभी बिकते प्रति मीटर
तुमसे लेकर तुमको ही
बेचे जाते प्रति लीटर
कुछ और नहीं हो तुम
बाज़ारों का उत्पाद हो जनता ।
तुम जो सारे के सारे हो
रैलियों के बस नारे हो
रहनुमाओं की राहों में
तुमको फूल बरसाना है
जो लिखकर दिया गया है
यशस्वी गीत तुम्हे गाना है
सत्ता रूपी पौधे की
तुम तो बस एक खाद हो जनता ।
सिंहासन पर बैठी बैठी
मार ठहाके वो हंसती ।
कहीं लुट रही है दुकानें
कहीं जल रही है बस्ती ।
युद्ध से पहले चेताया था
हम ही यहां के राजा रानी
अब बर्बाद करेंगे उनको
बात जिन्होंने नहीं मानी ।
नहीं लड़ सकती खुद तुम कभी
तभी तो यूं बर्बाद हो जनता ।
मनोज नायाब
चुनावी कीर्तन में तुम प्रसाद हो जनता ।
ReplyDeleteखत्म हुआ मज़मा तो बेस्वाद हो जनता ।
।।।।... एक अंधे दौड़ में शामिल जनता को आईना दिखाती रचना और प्रजातांत्रिक व्यवस्था पर बेहतरीन कटाक्ष करती प्रेरक रचना। ।।।।