Tuesday, October 29, 2019

Tum gaye to chand kuch aisa tha

तुम गए तो चांद कुछ कुछ यूं ही लगा मुझे
वादों के घड़े पर
तांबे की पुरानी तश्तरी सा
घिसा घिसा सा था ।
अधूरी नींद काटी हुई
खुली आंखों से छुआ ज्यों
लिस लिसा सा था ।
आधा चांद किसी ने इश्क के सिलबट्टे पर
कूटकर मानो सितारे बना लिए
और किसी की ज़ुल्फ़ों में टांक दिए
बचा आधा चांद दो पाटों में
पिसा पिसा सा था ।
रोज़ जो उभरा सा रहता है खुशी से
आसमा के माथे पर
चांद आज धंसा धंसा सा था ।
तुम गए तो चांद कुछ कुछ यूं ही लगा मुझे ।
सचमुच तुम गए तो चांद कुछ कुछ यूं ही लगा मुझे ।

मनोज " नायाब "






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