ये भी
सनद रहे
सांसों की दौलत पर
इतना गुररु ठीक नहीं ।
उम्र की जेब से
लम्हों के सिक्के
एक एक कर
गिरते जा रहे हैं ,
और तुम्हें इसका एहसास तक नहीं ,
ज़ाया क्यों करते हो
इन्हें तुम
उससे बेहतर है इन सिक्कों
को कुछ अच्छी चीजों पर खर्च करो
खरीदो थोड़ी इंसानियत
किसी को सहारा देकर
घर ले आओ थोड़ी दुआओं (के जवाहरात)
किसी डूबते की किनारा देकर
सांसों के कुछ सिक्के उन बुजुर्गों
पर भी खर्चो जो उम्र के
आखिरी पड़ाव पर है,
कुछ सिक्के बिना गिने
वक्त की जेब से निकालकर
फैंक सकते हो
रिश्तों की नदी में
मनोज "नायाब"
सनद रहे
सांसों की दौलत पर
इतना गुररु ठीक नहीं ।
उम्र की जेब से
लम्हों के सिक्के
एक एक कर
गिरते जा रहे हैं ,
और तुम्हें इसका एहसास तक नहीं ,
ज़ाया क्यों करते हो
इन्हें तुम
उससे बेहतर है इन सिक्कों
को कुछ अच्छी चीजों पर खर्च करो
खरीदो थोड़ी इंसानियत
किसी को सहारा देकर
घर ले आओ थोड़ी दुआओं (के जवाहरात)
किसी डूबते की किनारा देकर
सांसों के कुछ सिक्के उन बुजुर्गों
पर भी खर्चो जो उम्र के
आखिरी पड़ाव पर है,
कुछ सिक्के बिना गिने
वक्त की जेब से निकालकर
फैंक सकते हो
रिश्तों की नदी में
मनोज "नायाब"
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