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Kya ab bhi yaad hau

             " क्या अब भी याद आता है " बचपन अब भी कहीं छुपा बैठा है मुझ में तुझ में हर एक में कहीं न कहीं । सच बताना क्या अब भी याद आता है स्कूल का बस्ता गद्दे पर फेंक कर दोस्तों के साथ नंगे पांव ही गलियों में क्रिकेट खेलना । सच बताना क्या अब भी याद आता है दोस्तों के साथ सारी रात vcr पर फिल्में देखना । सच बताना क्या अब भी याद आता है पिताजी की उंगली पकड़कर मौहल्ले की पुरानी सी नाई की दुकान पर बाल कटिंग करवाना । सच बताना क्या अब भी याद आता है सिनेमा हॉल के सामने खड़े होकर फिल्मों के पोस्टर देखना और फिल्मों की कहानी सुनाना । सच बताना क्या अब भी याद आता है मामाजी की दी हुई लाइट वाली घड़ी दोस्तों को दिखाकर रौब झाड़ना । सच बताना क्या अब भी याद आता है पड़ोस के कमलेश चाचा के बेटे के ससुराल से आई हुई 5 पीस मिठाई का बहन भाईयों में बांटना और झगड़ना । सच बताना क्या अब भी याद आता है कुल्फी वाले ठेले की घंटी की आवाज़ सुनकर माँ से 2 रुपए की जिद्द करना । सच बताना क्या अब भी याद आता है बड़े भाई की छोटी हो चुकी पैंट न पहनने की जिद्द करना सच बताना क्या अब भी याद आत

सांसों की दौलत #sanso'n ki daulat#

 ये भी सनद रहे सांसों की दौलत पर इतना गुररु ठीक नहीं । उम्र की जेब से लम्हों के सिक्के एक एक कर गिरते जा रहे हैं , और तुम्हें इसका एहसास तक नहीं , ज़ाया क्यों करते हो इन्हें तुम उससे बेहतर है इन सिक्कों को कुछ अच्छी चीजों पर खर्च करो खरीदो थोड़ी इंसानियत किसी को सहारा देकर घर ले आओ थोड़ी दुआओं (के जवाहरात) किसी डूबते की किनारा देकर सांसों के कुछ सिक्के उन बुजुर्गों पर भी खर्चो जो उम्र के आखिरी पड़ाव पर है, कुछ सिक्के बिना गिने वक्त की जेब से निकालकर फैंक सकते हो रिश्तों की नदी में मनोज "नायाब"