वक्त पे जागना जरूरी है

पूरी दुनियां में सूरज ने रोशनी छिटका दी
अब चाहे तुम अपने मन के कमरे
और उसके खिड़की दरवाजों को
पर्दों से ढककर इस मुगालते
में रहो की सुब्ह होनी बाकी है
सोचते रहो की अभी तो अंधेरा है ।
अपनी ढीठ पने की चादर मन मष्तिस्क
पे डालकर ये कब तक प्रतीक्षा करते रहोगे
की सुब्ह तब होगी जब कोई अलार्म घड़ी
चीखेगी या कोई मुर्ग़ा बांग देगा ।
सच तो ये है कि बेसुध सोये हुओं को
अलार्म भी नही जगा सकती ।
जागने वाले आहटों से जाग जाते हैं ।
जब तुम्हारी नींद टूटेगी
तब तक बहुत देर हो चुकी होगी
उम्र का सूरज ज़िन्दगी का
आधा आसमान पार कर चुका होगा
तुम घर से निकलोगे तब तक तो
जीवन की सांझ होने वाली होगी ।
वक्त पे जागना जरूरी है बस ।

Comments

Popular posts from this blog

यहाँ थूकना मना है yahan thukna mana hai

हां हिन्दू हूँ

दोस्त जो चले गए