वो गीत नहीं भूलूंगा #wo geet nahin bhulunga#

अपनों की कीमत वार के पाई
वो प्रीत नहीं भूलूंगा ।
जीवन भर का सब हार के पाई
वो जीत नहीं भूलूंगा ।

घर के पूजाघर में माँ ,
जो सुबह सुबह गाया करती थी
गोदी में ढककर आँचल से
जो लोरी मुझे सुनाया करती थी
अपने बचपन के सपन सलोने
वो गीत नहीं भूलूंगा ।।

रोज़ रोज़ मंदिर मस्जिद के
ये झगडे क्यों होते हैं
रोज़ रोज़ सड़कों पे
ये रगड़े क्यों होते हैं
जाते जाते गोरों ने डाली थी सन 47 की
वो भीत नहीं भूलूंगा ।।

मेरे जीवन की ऊष्मा को
मद्धम जिसने कर डाला
मेरे हिस्से के सूरज के
पंखों को जिसने कुतर डाला
वक्त के निष्ठुर मौसम की
वो शीत नहीं भूलूंगा ।।

मौसम की तरह जो बदले
अपनी फितरत हरदम
जो बैठे तैयार लगाने
इश्क की कीमत हरदम
मुंह फेर के जाने वाला वो
मनमीत नहीं भूलूंगा ।

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