Posts

Showing posts from January, 2018

आओ रेत को निचोड़ें #aao ret ko nichod en#

चलो आओ निचोड़ें ज़िन्दगी की सूखी रेत चलो सींचें मिलकर नफरत से जलते खेत को नमी कुछ तो महसूस हो रही है कोशिश करें कुछ बूंदें छलक पड़ेगी सुख की प्यास और बढ़ने दो मन को ज़रा और मचलने दो धुप को मचाने दो शोर मत छोड़ना आशा का छोर हवा का रुख मोड़ो बादलों को झंझोड़ो उम्मीदों की छड़ी से करो उसमें सुराख़ कुछ तो बरसेगा ही जो चली गई रेत में नुमाया नहीं होती बरसी जो बून्द कभी जाया नहीं होती चलो आओ निचोड़ें ज़िन्दगी की सूखी रेत को चलो सींचें मिलकर नफरत से जलते खेत को

वो गीत नहीं भूलूंगा #wo geet nahin bhulunga#

अपनों की कीमत वार के पाई वो प्रीत नहीं भूलूंगा । जीवन भर का सब हार के पाई वो जीत नहीं भूलूंगा । घर के पूजाघर में माँ , जो सुबह सुबह गाया करती थी गोदी में ढककर आँचल से जो लोरी मुझे सुनाया करती थी अपने बचपन के सपन सलोने वो गीत नहीं भूलूंगा ।। रोज़ रोज़ मंदिर मस्जिद के ये झगडे क्यों होते हैं रोज़ रोज़ सड़कों पे ये रगड़े क्यों होते हैं जाते जाते गोरों ने डाली थी सन 47 की वो भीत नहीं भूलूंगा ।। मेरे जीवन की ऊष्मा को मद्धम जिसने कर डाला मेरे हिस्से के सूरज के पंखों को जिसने कुतर डाला वक्त के निष्ठुर मौसम की वो शीत नहीं भूलूंगा ।। मौसम की तरह जो बदले अपनी फितरत हरदम जो बैठे तैयार लगाने इश्क की कीमत हरदम मुंह फेर के जाने वाला वो मनमीत नहीं भूलूंगा ।

जाधव

‌             "जाधव" #jadhav# बहू जल्द तैयार हो जा आज चलना है, जाधव से मिलवाने का वादा किया है सरहद पार वालों ने, अलमारी से वो सोने वाला मंगलसूत्र निकाल लेना जो जाधव ने तुझे तेरे वर्षगांठ पे तुझे दिया था, वो चप्पल जो लाया था वो बड़े चाव से, देख मैंने ये साडी पहनी है कैसी रहेगी उसे बहुत पसंद थी रोज़ कहता था माँ इस साडी में तू बहुत प्यारी लगती हो मिलने दे उसे जाकर पहले उसके कान खिंचुंगी वादा करके गया था माँ दिवाली से पहले लौट आऊंगा इस बार तेरे कमरे के परदे भी बदलवाऊंगा और धनतेरस वाले दिन तेरे लिए नयी गाडी खरीदूंगा, एक न. का झूठा माँ माँ करता रहेगा कुछ देर बात नहीं करुँगी फिर झूठे गुस्से को उतारकर गले से लगा लुंगी सीने से लगाकर खूब उलाहने दूंगी क्यूँ रे बदमाश अपने सारे वादे भूल गया और पूछूंगी क्यूँ रे शैतान घर कब आएगा चल मेरे साथ अभी चल कोई बहाना नहीं सुनूंगी मुझे बात करा तेरे अफसर से उनके भी तो बच्चे होंगे पूछूंगी भला इत्ते दिन तक  क्यूँ नहीं जाने दिया मेरे लाल को अरे ये क्या यहाँ ये कांच की दिवार क्यूँ है मुझे छूना है तुझे सीने से लगाना है तुझे इन